________________
पउम चरियं - श्री विमलसूरिकृत पद्यमय - 10000 श्लोक समराइच्च कहा - हरिभद्रसूरिकृत गद्यमय 10000 श्लोक सुरसुंदरीचरियं श्री धनेश्वरसाधुकृत पद्यमय 4000 श्लोक इसके सिवाय सुपासनाहचरियं कुमारपालचरित, सिरिसिरिवाल कहा, वसुदेव हिंडी आदि अनेक ग्रंथ प्राकृत भाषा की महत्ता सिद्ध करते है ।
I
जैन
1. चंद्रकृत-प्राकृत लक्षण
2. त्रिविक्रमदेवकृत
प्राकृतानुशासन
जैनेतर प्राकृत ग्रंथ :- कविवत्सल हाल कृता - गाथा सप्तशती, प्रवरसेनकृत- सेतुबंध (रावण वहो) वाक्पतिराजकृत गउडवहो तथा महुमहविचय, राजशेखरकृत कर्पूरमंजरी सट्टक, आनंदवर्धनकृता विषम बाल लीला, भूषणभट्टपुत्रकृता लीलावती कथा, आदि काव्य प्राकृत में है ।
3. श्री हेमचन्द्रसूरिकृत
प्राकृत व्याकरण
(सिद्धहेमशब्दानु
शासन के आठवे
अध्याय में
प्राकृत
-
प्राकृत व्याकरण
-
अजैन
1. पाणिनिकृत - प्राकृत लक्षण (जो हाल उपलब्ध नहीं है ।) 2. वररुचिकृत - प्राकृत प्रकाश
आदि छ
भाषाओं का बोध है ।
3. हृषीकेशकृत - प्राकृत व्याकरण 4. मार्कंडेयकृत - प्राकृत सर्वस्व 5. क्रमदीश्वरकृत - संक्षिप्तसार प्राकृत
व्याकरण
6. लक्ष्मीधरकृत - षड् भाषा चन्द्रिका