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5. प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर छठी विभक्ति होती है, लेकिन तादर्थ्य (उसके लिए) में संस्कृत की तरह चतुर्थी विभक्ति के एकवचन का प्रयोग होता है । उदा. आहाराय नयरं अडइ (आहाराय नगरमटति) 6. प्राकृत भाषा में धातुओं और शब्दों को तीन विभाग में बाँटा है । महाराष्ट्र- विदर्भ- मगध इत्यादि देशों में प्रचलित ।
1. + देश्य
2. तद्भव =
संस्कृत पर से प्राकृत नियमानुसार सिद्ध ।
3. तत्सम = संस्कृत के समान ।
देश्यधातु फुम
=
=
फूंकना .
फुम्फुल्ल = उठाना.
=
तद्भवधातु = कह् (कथ)
भम् (भ्रम्)
हण् (हन्)
अच्च् (अर्च) आदि
देश्यशब्द = अत्थग्ध = मध्यवर्ती. बीच में रहा हुआ.
चवल = चावल.
खउर = कलुषित.
थह = आश्रय, स्थान.
आहित्य = गया हुआ.
लल्लक्क = भयंकर.
विड्डिर = आडम्बर इत्यादि शब्द.
तद्भवशब्द = मयण (मदन)
भत्त (भक्त)
पहु (प्रभु) आदि
=
आलिंगन करना,
अवयास =
पिप्पड
= बकवास करना
इत्यादि धातुएँ तथा आदेश धातुएँ
पड् (पत्)
बाह (बाध)
अप्प् (अर्प)
तत्समधातु
भण्-चल्-वंद्-वस्-हस्-लज्ज्-रम् आदि
तत्समशब्द = सिद्ध, कमल, बुद्धि, माला, विमल, वीर आदि
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ओसढ (औषध) विण्हु (विष्णु)
+ कलिकालसर्वज्ञ भगवान श्रीहेमचन्द्रसूरिजी ने देशी नाममाला में देश्य शब्दों का
संग्रह किया है ।