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बनता है और वह समूहसूचक है इसलिए एकवचन में और नपुंसकलिंग में
होता है। 14. इस समास के अन्त में 'अ' हो तो कुछ प्रयोग में दीर्घ 'ई' होती है और
उसके रूप दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग नाम के समान बनते हैं। उदा. तिलोअं, तिलोई (त्रिलोकम्, त्रिलोकी) = तिण्हं लोआणं समाहारोत्ति नवतत्तं (नवतत्त्वम्) = नवण्हं तत्ताणं समाहारोत्ति
चउकसायं, चउक्कसायं (चतुःकषायम्) = चउण्हं कसायाणं समाहारोत्ति 15. कुछ स्थानों में समाहार द्विगु समास पुंलिंग में भी होता है । उदा. तिविगप्पो (त्रिविकल्पम्) = तिण्हं विगप्पाणं समाहारोत्ति
5. बहुब्बीही (बहुव्रीहि) समास . 16. (1) जिन पदों का समास किया हो उनसे अन्य पद की प्रधानता इस
समास में होती है, इससे यह सामासिक पद अन्य नाम का विशेषण बनता है तथा विभक्ति, वचन और लिंग विशेष्य के अनुसार होते हैं | (2) यह समास जो स्त्रीलिंग का विशेषण हो तो अन्त्य अ का आ अथवा ई प्रयोगानुसार होता है | उदा. कमलाणणा नारी (कमलानना नारी)
चंदमुही कन्ना (चन्द्रमुखी कन्या) 17. इस समास में अधिकतर पूर्वपद विशेषण बनता है और उत्तरपद
विशेष्य बनता है । कुछ स्थानों में उपमान तथा अवधारणसूचक पद भी पूर्वपद होता है । विशेषण पूर्वपद - नीलकंटो मोरो (नीलकण्ठो मयूरः) = नीलो कण्ठो जस्स सो । उपमान पूर्वपद - चंदमुही कन्ना (चन्द्रमुखी कन्या) = चन्दो इव मुहं जाए। अवधारण पूर्वपद - चरणधणा साहवो (चरणधनाः साधवः) = चरणं
चेअ धणं जाणं । 18. यह समास दो अथवा दो से अधिक समानाधिकरण (समान विभक्तिवाले)
पदों का बनता है । उदा. धुअसवकिलेसो जिणो (धुतसर्वक्लेशो जिनः)
= धुओ सव्वो किलेसो जस्स सो । - 19. कहीं-कहीं समान विभक्ति न हो तो भी यह समास बनता है, उसे
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