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________________ 2. 23. रोवन्ति रुवावन्ति य, अलियं जंपन्ति पत्तियावेन्ति । कवडेण य खंति विसं, मरन्ति न य जंति सब्भावं ||3| 24. मरणभयम्मि उवगए, देवा वि सइंदया न तारेति । धम्मो ताणं सरणं, गइत्ति चिंतेहि सरणत्तं ।।4।। 25. हन्तूण परप्पाणे, अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं, कए स णासेइ अप्पाणं ।।5।। प्राकृत में अनुवाद करें 1. पिता ने उपाध्याय के पास पुत्रों को तत्त्वों का ज्ञान ग्रहण करवाया । (गिण्ह) सिद्धराज ने हेमचन्द्रसूरिजी के पास व्याकरण रचवाया । (रय), इसलिए 'सिद्धहैम' इस प्रकार उसका नाम स्थापित करवाया (ठव) । 3. अच्छे शिष्य गुरुओं को अपनी भूलें सुनाते हैं (सुण) और सुनाकर क्षमा मांगते हैं । (खम्) ___4. जो पुस्तकों का विनाश करते हैं (वि + नास्), वे परलोक में गूंगे, अन्धे और बहरे होते हैं । 5. आचार्य शिष्यों को रात्रि के अन्तिम प्रहर में उठाकर (उद्द) हमेशा स्वाध्याय करवाते हैं। 6. नट ने राजा और परिषद् के लोगों को भरत राजा का नाटक दिखाया (दाव-दक्ख) और यह दिखलाते हए नट ने केवलज्ञान प्राप्त किया । ___7. पिता पुत्रों को विद्वान् गुरु के पास शिक्षा दिलाते हैं । (अणु + सास्) 8. राजा के बुद्धिशाली मन्त्री ने अपनी बुद्धि से नगर तरफ आते हुए शत्रुओं का नाश करवाया । (नासव) 9. राजा ने उपाध्याय को बुलाकर (बोल्ल) कहा कि तुम राजपुत्रों को नीतिशास्त्र और व्याकरणशास्त्र पढ़ाओ । 10. राम ने उस समय उसको जहर खिलाया होता (भक्ख) तो वह जरूर मरता । 11. माता को छोटे बालकों को नहीं डराना चाहिए । 12. तीर्थंकर भव्य जीवों को संसार के बन्धन में से मुक्त करके (मुय) शाश्वत सुख दिलाते हैं । (अप्प्)
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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