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________________ रायकेरं । (राजकीयम्) = राजा का एकल्लो) (एककः) अकेला रायक्कं एगो सव्वंगिओ (सर्वाङ्गीणः) = सर्वाङ्ग व्याप्त एक्को . अप्पणयं (आत्मीयं) = अपना मीसालिअं) (मिश्रकं) मिश्र कडुएल्लं (कटुतैलम्) = कटुतैल, मीसं । तीखा तैल विज्जुला । (विद्युत) बिजली अवरिल्लो (उपरि) = ऊपर का विज्जू । जित्तिअं, जेत्तिअं, जेत्तिलं, जेद्दहं पत्तलं । (पत्रम्) पत्र, पत्ता, पर्ण (यावत्) = जितना पत्तं । तित्तिअं, तेत्तिअं, तेत्तिलं, तेद्दहं (तावत्) एक्कसि = उतना एक्कसि ) (एकदा) = एक समय इत्तिअं, एत्तिअं, एत्तिलं, एद्दहं (एतावत्) एक्कइया ) = इतना भुमया । (भू) = भौं, भौंह, भू एत्तिअं, एत्तिलं, एद्दहं (इयत्) = इतना भमया ) केत्तिअं, केत्तिलं, केद्दहं (कियत्) = |पीवलं ) कितना पीअलं ) (पीतम्) पीला नवल्लो) (नवकः) = नया पीअं . नवो । अंधलो । (अन्धकः) अन्धा अंधो । अधिकतादर्शक और श्रेष्ठतादर्शक प्रत्यय 20. अधिकतादर्शक यर (तर) और श्रेष्ठतादर्शक यम (तम) प्रत्यय शब्द को लगाये जाते हैं, वे विशेषण बनते हैं । अन्त्य अ का ई करने पर इनका स्त्रीलिंग रूप बनता है, कुछ स्थानों में आ प्रत्यय लगाने पर भी स्त्रीलिंग रूप बनता हैं। उदा. धन्न - धन्नयरो (धन्यतर:) अधिक प्रशंसापात्र धन्नयमो (धन्यतमः) सर्वाधिक प्रशंसापात्र कट्ठ कट्ठयरं (कष्टतरम्) अधिक दुःखदायक कठ्ठयमं (कष्टतमम्) सर्वाधिक दुःखदायक लहु . लहुयरो (लघुतरः) अधिक छोटा लहुयमो (लघुतमः) सबसे छोटा % 3D १६४ D I
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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