SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपयोगी तद्धित प्रत्यय 14. संस्कृत में आनेवाले वत्-मत् प्रत्ययों के अर्थ में प्राकृत में आलु, इल्ल, उल्ल, आल, वन्त, मन्त, इत्त, इर और मण प्रत्यय आते हैं । उदा. नेहो अस्स अत्थि त्ति नेहालू (स्नेहवान्) जडा अस्स अत्थि त्ति जडालो (जटावान्) प. एकव. आलु - नेहालू (स्नेहवान्) स्नेहवाला _दयालू (दयावान्) दयावाला ईसालू (ईर्ष्यावान्) ईर्ष्यावाला इल्ल - छाइल्लो (छायावान्) छायावाला सोहिल्लो (शोभावान्) शोभावाला उल्ल - विआरुल्लो (विकारवान्) विकारवाला मंसुल्लो (श्मश्रुवान्) दाढ़ीवाला आल - सद्दालो (शब्दवान्) शब्दवाला जडालो (जटावान्) जटावाला रसालो (रसवान्) रसवाला वन्त - धणवन्तो (धनवान्) धनवाला भत्तिवन्तो (भक्तिमान्) भक्तिवाला मन्त - हणुमन्तो (हनुमान्) हनुमान सिरिमन्तो (श्रीमान्) श्रीमन्त, लक्ष्मीवाला इत्तो - कव्वइत्तो (काव्यवान्) काव्यवाला इर . गव्विरो (गर्ववान्) गर्ववाला मण - धणमणो (धनवान्) धनवाला 15. भाव में त्त-इमा-त्तण प्रत्यय लगते हैं। उदा. पीणत्तं, पीणिमा, पीणत्तणं (पीनत्वं) पुष्ट अवस्था पुप्फत्तं , पुप्फिमा, पुप्फत्तणं (पुष्पत्वं) पुष्पावस्था 16. भव (हुआ) अर्थ में इल्ल-उल्ल प्रत्यय आते हैं । उदा. इल्ल - गामिल्लो (ग्रामे भवः) गाँव में उत्पन्न हुआ पुरिल्ला (पुरे भवाः) नगर में उत्पन्न हुए उल्ल - अप्पुल्लं (आत्मनि भवम्) आत्मा में हुआ १६२
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy