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________________ भट्ठ (भ्रष्ट) = भ्रष्ट, पतित |वत्तार । (वक्तृ) = वक्ता, बोलनेवाला भमंत (भ्रमत्) = घूमता भत्तार) (भर्तृ) = भर्ता, पोषण विरूव (विरूप) = कुरूप, खराब रूप भत्त करनेवाला विसमिसिअ (विषमिश्रित) = जहरवाला मिसिअ (मिश्रित) = मिश्रण किया हुआ | वीयराग (वीतराग) = रागरहित रअ (रत) = आसक्त धातु .. अल्ली (आ + ली) = आश्रय करना, |पउस्स्। (प्र + द्विष) = द्वेष करना आलिंगन करना, प्रवेश करना । पउस् । कंख् । (कास) = चाहना, पल्लोद्द । (पर्यस्) = फेंकना मह ) पल्हत्थ् । घोट्ट (पा) = पीना रुंम् । (रुध) = रोकना निगिण्ह । (नि + ग्रह) = पकड़ना, |रुंध् । नग्गह रोकना, शिक्षा करना सिणिज्झ (स्निह्य) = स्नेह करना निवड् (नि + पत्) = गिरना अव्यय अंत-अंतो (अन्तर) = अन्दर, बीच में | झडित्ति-झडत्ति-झत्ति (झटिति) अम्मो (दे.) = आश्चर्य = जल्दी अहो (अहो) = विस्मय, आश्चर्य , शोक | तहिं (तत्र) = वहाँ किर-इर-हिर-किल (किल) = निश्चय, तहवि (तथापि) = तो भी संभावना, संशय सणियं (शनैस्) = धीरे-धीरे हिन्दी में अनुवाद करें1. हं वच्छाणं पण्णाणि छेच्छं । 2. अम्हे साहुणो सगासे तत्ताई सोच्छिस्सामो । 3. जइ माआ जत्ताए गच्छिइ तो वच्छो दुहिआ य रोच्छिहिन्ति । 4. अम्हे किर सच्चं वोच्छिस्सामो । सव्वण्णू झत्ति सिवं गच्छिहिरे । 6. हं सत्तुंजयं गच्छिस्सं, तहिं गिरिस्स सोहं दच्छं, तह सेत्तुंजीए नईए ण्हाहिस्सं , पच्छा य तित्थयराणं पडिमाओ चन्दणेण पुप्फेहिं च - - १२६ -
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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