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प्र. पु.
द्वि. पु.
पाठ
आज्ञार्थ और विध्यर्थ
आज्ञार्थ और विध्यर्थ के प्रत्यय समान ही हैं ।
(३/१७६, १७३, १७४, १७५)
-
•
एकवचन
मु
हि, सु, इज्जसु, इज्जहि, इज्जे, 0 (लुक्)
उ, (तु), (ए)
15
बहुवचन
मो
ह
तृ. पु.
न्तु
1. आज्ञा, आशा, प्रार्थना, आशीर्वाद, योग्यता, उपदेश, शक्यता, संभव, धर्म आदि अर्थ में आज्ञार्थ और विध्यर्थ का प्रयोग होता है ।
2. ये (उपर्युक्त ) प्रत्यय लगाने पर पूर्व में अ हो तो अ का ए विकल्प से होता है । (३/१५८)
उदा. जाण् + अ + मु = जाणेमु-जाणमु
3. • इज्जसु, इज्जहि, इज्जे, 0 ( लुक्) ये प्रत्यय अकारान्त अंगवाले धातुओं को ही लगते हैं । (३/१७५)
उदा. गच्छ् + अ + इज्जसु = गच्छिज्जसु, गच्छिज्जहि, गच्छिज्जे,
गच्छ.
4. आर्ष प्राकृत में दूसरे पुरुष एकवचन में इज्जसि, इज्जासि, इज्जाहि प्रत्यय भी लगाये जाते हैं । ( ३/१६५)
उदा. गच्छ् + अ + इज्जसि = गच्छिज्जसि, गच्छेज्जसि, गच्छिज्जासि, गच्छेज्जासि, गच्छिज्जाहि, गच्छेज्जाहि आदि रूप होते हैं ।
5. हि प्रत्यय लगाने पर पूर्व का स्वर दीर्घ भी होता है ।
उदा. गच्छ + हि = गच्छाहि, पढ + हि = पढाहि
6. ह प्रत्यय लगाने पर ज्जा आगम विकल्प से रखा जाता है । उदा. गच्छेज्जाह अथवा गच्छेह
स्वरान्त धातुओं को भी विकल्प से 'अ' प्रत्यय लगाकर तथा छठे पाठ में दिये हुए ज्ज, ज्जा के नियम ध्यान में रखकर विध्यर्थ- आज्ञार्थ के रूप करें ।
आर्ष में 'इज्जासु' प्रत्यय भी आता है - गच्छिज्जासु.
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