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________________ आओ संस्कृत सीखें दूसरे गण के धातु अद् = खाना (परस्मैपदी)| रुद् = रोना (परस्मैपदी) अन् = जीना (परस्मैपदी)| शास् = शासन करना (परस्मैपदी) प्र+अन्=प्राण धारण करना (परस्मैपदी)| अनु+शास् = आज्ञा करना (परस्मैपदी) चकास् = प्रकाशित होना (परस्मैपदी) श्वस् = श्वास लेना (परस्मैपदी) जश् = खाना (परस्मैपदी)| वि+श्वस् = विश्वास करना(परस्मैपदी) जागृ = जगना (परस्मैपदी)| आ+श्वस् आश्वासन लेना(परस्मैपदी) दरिद्रा = दरिद्र होना (परस्मैपदी)| स्वप् = सोना (परस्मैपदी) चेष्ट-गण १ चेष्टा करना (आत्मनेपदी) शब्दार्थ गर्दभ = गधा (पुंलिंग)| वसुमती = पृथ्वी (स्त्री लिंग) चूत = आम (पुंलिंग)| विश्वसनीयता विश्वास योग्य(स्त्री लिंग) निस्वन = शब्द (पुंलिंग)| शुच् = शोक (स्त्री लिंग) पौरव = पुरु राजा के वंशज (पुंलिंग)| तरल = चंचल (विशेषण) भाग = भाग, भाग्य (पुंलिंग)| दुर्विनीत = अविनयी (विशेषण) लोहकार = लुहार (पुंलिंग)| पत्रल = पत्तों वाला (विशेषण) वर्ग=समान व्यक्तियों का समूह (पुंलिंग)| फलित = फल वाला (विशेषण) शेष = बचा हुआ (पुंलिंग)| मुग्ध = भोला (विशेषण) भस्त्रा = धमन (स्त्री लिंग)| शासितृ = शासन करनेवाला(विशेषण) ज्योतिस् = ज्योति (नपुं. लिंग) संस्कृत में अनुवाद करो : 1. हे भ्रमर ! उस मार्ग को देख, तू रो मत (रुद्) जिसके वियोग में तू मरता है, वह ___ मालती देशांतर गई है। 2. बंधुओं को करुणता से रोते देख मनुष्य मर जाता है । (रुद्) जिस तरह आकाश में तारा मंडल के बीच चंद्रमा प्रकाशित होता है, उसी तरह इस पृथ्वीतल के विषय में मुनि मंडल के बीच में आचार्य हेमचन्द्र प्रकाशित होते हैं । (चकास्)
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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