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________________ 131 आओ संस्कृत सीखें और जिस प्रकार दातरडे के द्वारा घास काटा जाता है, उस प्रकार तलवारो द्वारा शत्रु के सैन्य को काट डाला । (कृत् - गण ६) 5. अरे सुशीला ! यहाँ चादर बिछा । (प्र + स्तृ) 6. सभी लोग बड़प्पन पाने के लिए तड़पते हैं, (प्र+स्पन्द्) परंतु बड़प्पन खुले हाथों से प्राप्त किया जाता है। (प्र + आप्) 7. कई दिनों से उपार्जित धन को खा । अरे मूर्ख ! एक भी पैसा इकट्ठा मत कर । (सम् + चि) क्योंकि कोई ऐसा भय आ गिरता है । (आ+पत्) कि जिससे यह जन्म समाप्त हो जाता है । (सम् + आप्) हिन्दी में अनुवाद करो : 1. कथं य एव मद्विनाशेन' चन्द्रगुप्तं सेवितुमुद्यता: त एव मां परिवृण्वन्ति ? 2. तं संदेशं देवः श्रोतुमर्हति । 3. स्रजमपि शिरस्यन्धः क्षिप्तां धुनोत्यहिशङ्कया । 4. कर्ण-सूची-प्रवेशाभं सुता-जन्म सोऽशृणोत् । 5. आर्यपुत्र ! त्वया विरहिता मुहूर्तमपि स्थातुं न शक्नोमि । तदवश्यं मयाऽपि गन्तव्यमरण्यम्, अवमत्य चेद् गच्छसि मां, गच्छ, सिध्यतु तवाभीष्टम्। अव+मन्+य = अवमत्य 6. महती कथैषा न शक्यते संक्षिप्य कथयितुम् । 7. शृणु वर्ण्यमानमस्य वृत्तान्तम् । .. 8. दशरथो राजा सामन्तान्सचिवानपि राममानेतुं प्राहिणोत् । 9. नित्यमप्येवं वदन्ती हा त्वामपि दुनोम्यहम् । टिपण्णी : 1. मम विनाश: मविनाशः तेन मविनाशेन । 2. सूच्याः प्रवेशः सूचीप्रवेश: कर्णे सूची प्रवेश: कर्ण सूची प्रवेशः कर्णसूची प्रवेशस्य आभा यस्यतत् - कर्ण सूची प्रवेशाभम् ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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