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आओ संस्कृत सीखें
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उदा. पठ् + अ (घञ्) = पाठः
भू + अ (घञ्) = भावः यहां जित् होने से वृद्धि हुई है ।
मद् + अ (अल्) = मदः नी + अ (अल्) = नयः जि + अ (अल्) = जयः
दसवें गण के धातु कृत् = कीर्तन करना (परस्मैपदी) क्षत् = धोना
(परस्मैपदी) छद् = ढकना (परस्मैपदी) लल् = लालन पालन करना(आत्मनेपदी) लोक् = देखना (परस्मैपदी) वञ्च् = ठगना (आत्मनेपदी)
युजादि धातुएँ युज् = जोडना
प्री = खुश करना (उभयपदी) आ + सद् = प्राप्त करना अर्च् = पूजा करना (आत्मनेपदी) सह = सहन करना
तप् = तपाना (आत्मनेपदी) धू = हिलाना (उभयपदी) मृष् = क्षमा रखना (आत्मनेपदी)
शब्दार्थ अद्रि = पर्वत (पुंलिंग) | शाखिन् = वृक्ष (पुंलिंग) क्रम = अनुक्रम (पुंलिंग) | ज्या = धनुष की डोरी ( स्त्री लिंग) गन्धर्व = गानेवाला (पुंलिंग) | तनया = पुत्री (स्त्री लिंग) जीमूत = मेघ (पुंलिंग) | धात्री = धावमाता (स्त्री लिंग) तीर्थंकर = जगत्पूज्य (पुंलिंग) | स्पृहा = लालसा (स्त्री लिंग) पांसु = धूल
(पुंलिंग) | अंहस् = पाप (नपुं. लिंग) विध = प्रकार (पुंलिंग) | आकर्षण = खिंचाव (नपुं. लिंग) टिपण्णी : 1. युजादि धातु परस्मैपदी है, परंतु णिच् प्रत्यय नहीं लगने पर पद
बदलता भी है, वह साथ में दिया है । उदा. योजयति । योजति ।
तापयति । तपते । धूनयति । धवति । धवते ।