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________________ आओ संस्कृत सीखें नियम 7 से मुन्च् + अ + ति नियम 8 से मुञ्च् + अ + ति = मुञ्चति, लुम्पति आदि छठे गण के धातु अभि+सिच्=अभिषेक करना(परस्मै.) । आ + इ = आदर करना (आत्मनेपदी) कृत् = काटना (परस्मैपदी) | पृ = उद्यम करना (आत्मनेपदी) कृ = बिछाना (परस्मैपदी) |वि+आ+पृ =व्यापार करना(आत्मने.) खिद् = खिन्न होना (परस्मैपदी) | आ+प्रच्छ् = अनुमति लेना (आत्मने.) त्रुट् = टूटना (परस्मैपदी) | नि+विश् = प्रवेश करना (आत्मनेपदी) धू = हिलाना (परस्मैपदी) | लस्ज् = शर्माना (आत्मनेपदी) नू = स्तुति करना (परस्मैपदी) |स्वङ् = मिलना ___(आत्मनेपदी) पिश् = पीसना (परस्मैपदी) कृष् = खिंचना (उभयपदी) मस्ज् = स्नान करना ___ (परस्मैपदी) तुद् = दुःखी होना (उभयपदी) मृ = मरना (परस्मैपदी) | भ्रस्ज् = पकाना (उभयपदी) मृश् = विचार करना (परस्मैपदी) | लिप् = लेप करना (उभयपदी) विच्छ = जाना (परस्मैपदी) |लुप् = काटना (उभयपदी) व्रश्च् = काटना (परस्मैपदी) | क्षिप् = फेंकना (उभयपदी) रि = जाना (परस्मैपदी) |विद् = प्राप्त करना (उभयपदी) सू = प्रेरणा करना (परस्मैपदी) | शब्दार्थ तात = पिता (पुंलिंग) | अञ्जन = काजल (नपुं. लिंग) मराल = हंस (पुंलिंग) | तमस् = अंधकार (नपुं. लिंग) शूकर = सुअर (पुंलिंग) | पद = स्थान, पेर (नपुं. लिंग) सुधा = अमृत (स्त्री लिंग) पाथेय = भाता (नपुं. लिंग) अज्ञ = अज्ञानी (विशेषण) | भवितव्य= अवश्य होनेवाला (नपु. लिंग) अद्भुत = आश्चर्यकारी (विशेषण) | मानस = मानस सरोवर (नपुं. लिंग) अपर = दूसरा (विशेषण) |यवस् = घास (नपुं. लिंग) निखिल = समस्त (विशेषण) | यतस् = क्योंकि (अव्यय) पर = उत्कृष्ट (विशेषण) |
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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