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________________ आओ संस्कृत सीखें #333 हुआ भी कपूर अपनी सुगंध को छोडता नहीं है । __सज्जन के संग में इच्छा, दूसरों के गुणों में प्रीति, गुरु में नम्रता, विद्या में व्यसन, अपनी स्त्री में रति, लोक निंदा से भय, अरिहंत में भक्ति, आत्मदमन में शक्ति, दुर्जन के संग से मुक्ति - जिसमें ये निर्मल गुण रहते हैं, वे इस पृथ्वी पर प्रशंसनीय हैं। राज्य, संपत्ति, भोग, कुल में जन्म, सुंदर रूप पांडित्य, दीर्घ आयुष्य और आरोग्य-धर्म के ये फल हैं। हे प्रभो ! हमें इच्छित की प्राप्ति नहीं होती है, उसमें आपका दोष नहीं है, वह हमारे ही कर्मों का दोष है, उल्लू दिन में नहीं देखता है तो उसमें सूर्य का दोष कैसे? यदि सज्जनों के मार्ग का संपूर्ण अनुसरण शक्य न हो तो आंशिक भी अनुसरण करना चाहिए क्यों कि मार्ग में रहा हुआ खेद नहीं पाता है। विपत्ति में दीन न बनना महान् पुरुषों के मार्ग का अनुसरण करना, न्याययुक्त वृत्ति को प्रिय बनाना, प्राणनाश के प्रसंग में भी मलिन कार्य को करणीय नहीं मानना, दुर्जनों से प्रार्थना नहीं करना, सज्जनों के इस विषम असि धाराव्रत को किसने बताया है? शक्य बात में प्रमादी मनुष्य ठपके का पात्र बनता है, अशक्य बात में मनुष्य अपराध के योग्य नहीं है। जो मनुष्य अपने और दूसरे के बल-अबल का विचार किए बिना अशक्य अर्थ में प्रवृत्ति करता है, वह विद्वानों के लिए हँसी का पात्र ही बनता है। __ शक्ति होने पर बुद्धिशाली व्यक्ति को परोपकार करना चाहिए, परोपकार की शक्ति न हो तो स्व उपकार में विशेष आदर करना चाहिए। विद्या और ध्यानयोग में अच्छी तरह से अभ्यास होने पर भी हितेच्छु को संतोष नहीं करना चाहिए, बल्कि उन दोनों में स्थिरता ही हितकर है। सत्पुरुष, नम्र व्यक्तियों में दयालु, दीन का उद्धार करने में तत्पर, स्नेहपूर्वक चित्त देनेवाले के विषय में अपने प्राण भी देनेवाले होते हैं। गुरु प्रत्यक्ष में स्तुति योग्य है। मित्र और बंधु परोक्ष में स्तुति योग्य हैं । नौकर वर्ग कार्य के अंत में स्तुति योग्य है। पुत्र स्तुति करने योग्य नहीं है और स्त्रियाँ मरने के बाद स्तुति करने योग्य हैं। एकांत सुख और एकांत दुःख को पाया हुआ कौन है ? चक्र की धारा के समान मनुष्य ऊपर और नीचे जाता है।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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