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________________ आओ संस्कृत सीखें 33053 पाठ 20 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. शरद ऋतु के वश से चंद्र की किरणे अधिक शोभावाली होती हैं । 2. बलवानों से भी बलवान यह पृथ्वी बहरत्न वाली है। 3. विद्वानों की बुद्धि को वास्तव में दुसाध्य क्या है? 4. पुण्यशाली पुरुषो को परदेश में भी लक्ष्मी निश्चय ही साथ रहने वाली होती है। दरिद्र (गरीब) मनुष्यो की स्त्रियाँ ज्यादातर जल्दी गर्भ धारण करने वाली होती हैं। (गर्भ बिभ्रति इति गर्भ भृतः) । 6. अंजन का अंश भी धोए हुए सफेद कपड़े की शोभा के नाश के लिए होता है। (श्रियाः छिद् = श्रीछिद् तस्यै श्रीछिदे) 7. अपने अपने उचित कर्म को करते कमठ और धरणेन्द्र के ऊपर समान मनोवृत्ति रखनेवाले पार्श्वनाथ भगवान आपकी लक्ष्मी (शोभा) के लिए हों। 8. धर्म में धन की बुद्धि धारण कर, धन में कभी भी धन की बुद्धि धारण मत कर। सद्गुरु की कही हुई शिक्षा का सेवन कर, लेकिन स्त्री की सेवा न कर । 9. मोह के अस्त्र को जिसने निष्फल किया है, ऐसे ज्ञान रूपी बख्तर को जो धारण करता है, उसे कर्म के संग्राम की क्रीड़ा में भय कहाँ से हो? अथवा पराजय कहाँ है? 10. आयुष्य ध्वजा समान चपल है, लक्ष्मी तरंग समान चंचल है, भोग सर्प की फणों की तरह भयंकर हैं, संगम स्वप्न तुल्य हैं । 11. यह राजा याचकों की बड़ी आशाओं को पूर्ण करने वाला है और गाँव के नेता याज्ञिक और उनकी स्त्रियों का नित्य पूजक है । 12. सभी गुणो की खान, पृथ्वी का भूषण ऐसे पुरुष रत्न का, विधाता सर्जन तो करता है, लेकिन उसे क्षण भंगुर बनाता है तो वह बहुत दुःख की बात है अथवा विधाता की अज्ञानता है। .. 13. निर्धन मनुष्य को लज्जा आती है, लज्जा वाला अपने तेज से भ्रष्ट होता है, तेजरहित पराभव पाता है। पराभव से कंटाला आता है। कंटाले से शोक पाता है। शोक के वश हुआ बुद्धि से रहित बनता है बुद्धि रहित क्षय पाता है अहो! निर्धनता सभी दुःखों का स्थान है।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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