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________________ आओ संस्कृत सीखें 292 पाठ 12 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. अहो ! प्रतापवाले भी इस शरीर का विश्वास करने की योग्यता । आप मुझे आज्ञा करो । 2. 3. हे हृदय ! आश्वासन धर, आश्वासन धर, यह वास्तव में आर्यपुत्र है । 4. तू क्यो रो रहा है? तेरे रोने का क्या कारण है ? 5. हृदय में नहीं समाते हुए शोक द्वारा वह खूब रोई । 6. श्वास छोड़कर (निःश्वस्य) वह धीरे से बोली, 'हे महाभाग ! मंद भाग्यवाली मैं क्या करूँ ? 7. 8. 9. प्रताप से प्रकाशित दशरथ ने पृथ्वी पर राज्य किया । प्रयोजन बिना चाणक्य स्वप्न में भी चेष्टा नहीं करता है । विश्वास करने योग्य भी अपने वर्ग के विषय में हमारी बुद्धि विश्वास नहीं करती है । 10. दमयंती ने रात्रि के शेष भाग में इस प्रकार का स्वप्न देखा, 'मैंने फले-फूले पत्ते वाले आम के वृक्ष पर चढ़कर भ्रमर के आवाज को सुनते हुए उसके फल खाए । ' 11. एक भी सुपुत्र द्वारा सिंहनी निर्भय होकर सोती है, जब कि दश पुत्र होने पर भी गधी भार को वहन करती है। 12. जिसके दिन तीन वर्ग से शून्य आते हैं और जाते हैं, वह लुहार की धमण की तरह श्वास लेने पर भी जीता नहीं है । 13. जो ( तत्त्वदृष्टि ) सभी प्राणियों में रात्रि ( समान) है, उसमें संयमी जागृत होते हैं और जिसमें (मिथ्यादृष्टि) प्राणी जागृत होते हैं, वह मुनि के लिए रात्रि समान है। 14. शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त बोलता है - अथवा मनुष्य की स्त्रियों में यह रूप कैसे संभव हो, प्रभा से देदीप्यमान ज्योति पृथ्वीतल में उदय नही पाती है। 15. जिन सत्पुरुषों के हृदय में परोपकार की क्रिया जागृत है, उनकी विपत्तियाँ नष्ट होती हैं और कदम कदम पर संपत्तियाँ होती हैं। 16. दुर्विनीतों को शिक्षा करनेवाला पौरव राजा पृथ्वी पर राज्य करता हो तब वह कौन है, जो भोली तपस्वी कन्याओं के साथ अविनय का आचरण करता है।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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