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आओ संस्कृत सीखें
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10. स्ववचसा परिहृतमाहारमहं कथं गृह्णीयाम् । 11. पण्डिताः प्रियस्य वियोगविषस्य वेगं जानन्ति तत एव बिलगतं सर्पमिव
प्रेम परिहरन्ति । 12. तस्या मुखकबरीबन्धौ शोभां धरतः जाने शशिराहू मल्लयुद्धं कुरुतः ।
पाठ 10
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. सिद्धराज ने अवन्ती नगरी को घेर लिया था । 2. धन को धर्म में उपयोग में लेना चाहिए (मनुष्य को)। 3. तेरे उत्सुक चित्त को रोकना चाहिए । 4. जैसे तैसे (किसी भी प्रकार से) भी प्राणियों पर दया कर, जैसे तैसे धर्म कर, जैसे
तैसे भी शांति रख । जैसे तैसे भी कर्म का छेद कर । 5. जो रात में भी खाते हैं, वे पाप रूपी द्रह में डूबते हैं । 6. सूखे लकड़े और मूर्ख को भेद सकते हैं। फिर भी वे झुकते नहीं हैं । 7. हजारों मूों से एक बुद्धिमान ज्यादा है - विशेष है । 8. उसी के बुद्धिरूपी बाण से (उसी के) मर्म को भेद रहा हूँ। 9. क्या पता ! उनके हृदय को लज्जा भेदती नहीं है। 10. मेरे हाथियों का झुंड नगर को घेर ले । 11. मित्र के स्नेह से विह्वल बना हुआ वह अभी मुझे साहस में जोड़ता है। 12. यह स्त्री पानी ढो रही है, यह स्त्री सुगन्धित द्रव्यों को पीस रही है। 13. जिसके लिए (पैसे के लिए) पुत्र पिता को, पिता पुत्र को शत्रु की तरह मारते
हैं और मित्र, मित्र से मित्रता तोड़ते हैं ! 14. जिस (स्पृहा या विषलता) का फल, मुखशोष, मूर्छा और दीनता है, उस स्पृहा
रूपी विषलता को पंडित पुरुष ज्ञान रूपी दातरड़े से काट लेते हैं । 15. (रोहणाचल की भूमि में भी) वहाँ भी उपाय बिना रत्न के ढेर प्राप्त नहीं होते है। सामने पड़ा हुआ भी भोजन हाथ बिना (प्रयत्न बिना) वास्तव में कौन खाता है!
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. कमपि प्राणिनं न हिंस्यात् । 2. सन्तः सदसद् विविश्वन्ति ।