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________________ 2286 आओ संस्कृत सीखें हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. हंसा कुसुमान्यचिनोत्तेषां च स्रजमसृजत् । 2. स शिखरिणो गुहायामुपविश्य विद्यामसाघ्नोत्, विद्यादेव्यकथयत् वरं वृणु, अहं वरं दातुं शक्नोमि । 3. सत्कार्येण जनस्य कीर्ति लोंकेऽश्नुते । 4. अरि-सैन्यं पराजेतुं तेऽधृष्णुवन्, यथा च दात्रैस्तृणं कृणुयुस्तथासिभिश्शत्रु सैन्यमकृन्तन्। अरे सुशीले ! कुथमत्र प्रस्तृणु । 6. अखिला लोका महत्त्वाय प्रस्पन्दते, किन्तु महत्त्वं मुक्तेन हस्तेन प्राप्यते । 7. दिवसैरर्जितं खाद, मूर्ख ! एकमपि द्रम्मं मा सञ्चिनु, यतः किमपि तद्भयमापतति हि येन जन्म समाप्यते । पाठ 8 __ संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. गुणों में प्रयत्न करो, आडंबर करने से क्या प्रयोजन है? 2. इसका हम वध कर रहे हैं' इस की हम भक्ति कर रहे हैं, इस प्रकार जो दोनो की बुद्धि है, उन दोनों पर भी हितबुद्धि रखनी चाहिए। 3. अगर तुम वास्तव में सुख को चाहते हो, तो मन को थोड़ा भी विषयों में लिप्त मत करो और खराब काम मत करो। 4. हे मूढ़ ! हवा की तरह चपल मन को तू स्थिर (निश्चित) कर । 5. अहो ! अति घमण्डवाले ये चक्री पुत्र हमारा योग्य कहा हआ भी मानते नहीं हैं । घमण्ड को धिक्कार हो ! 6. भगवान सुमतिनाथ स्वामी आपके इच्छित (विस्तारों) को पूर्ण करें । देशकाल के अनुसार उचित क्रिया को करता हुआ (मनुष्य) वास्तव में दुःखी नहीं होता है। 8. आलस्य, वास्तव में मनुष्य के शरीर में रहा हुआ बड़ा शत्रु है । उद्यम जैसा कोई मित्र नहीं है, जिस (उद्यम) को करके (मनुष्य) दुःखी नहीं होता है। 9. जैसे हजारों गायों में बछड़ा अपनी माता को खोज लेता है, वैसे ही पूर्व में किया हुआ कर्म, करने वाले के पीछे चलता है ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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