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________________ 1283 o 7. आओ संस्कृत सीखें करो. (मेरे ऊपर आप प्रसन्न हो) 6. निश्चय से जो जीव मरता है, वही वापस उत्पन्न होता है । वहाँ सबका भाता और घास आदि समाप्त हो गया। 8. यह आश्रम द्वार है, जितने में प्रवेश कर रहा हूँ (उतने में) । 9. आश्रम स्थान शांत है और (मेरा दायाँ) हाथ हिल रहा है, यहाँ फल कहाँ से होगा अथवा अवश्य होनेवाले (कार्य) का कारण सर्वत्र होता है । 10. मानों अंधकार अंगों को लिपटता हैं, मानों आकाश काजल को बरसाता है, असत्पुरुषों की सेवा की तरह (मेरी) दृष्टि निष्फल हुई है, (अंधा मनुष्य बोल रहा है)। 11. अज्ञानी मनुष्य वास्तव में अज्ञान में ही मग्न रहता है, जैसे सूअर विष्ठा में मग्न रहता है, उसी प्रकार ज्ञानी ज्ञान में मग्न रहता है, जैसे हंस मान सरोवर में मग्न रहता है। हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. वैद्येन व्याधिभिः म्रियमाणस्य जनस्य व्याधि हियते । 2. गृहाद्गच्छन्पुत्रः पितरमापृच्छत । 3. वल्लभोऽद्भुतेन विनयेन शौर्येण च राजश्चित्ते न्यविशत । गुरुः सुधातुल्यया वाचा शिष्याणां संशयं वृश्चति, येन शिष्याः स्वीयं मस्तकं धुवन्तो गुरुं नुवन्ति । 5. अर्जुनो द्रोणाचार्याद्धनुर्विद्यामविन्दत । 6. तेन जातेन पुत्रेण को गुणो मृतेन च कोऽवगुणो यतो यस्मिन्सति पितु भूमिरपरेणाक्रम्यते। पाठ 5 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. स्पृहा वाले मनुष्य घास और रुई जैसे हल्के दिखते हैं । 2. जिसके हाथ जोड़े हुए हैं ऐसे स्पृहा वाले मनुष्यों द्वारा कौन कौन प्रार्थना नहीं । कराता है । (अर्थात् सभी कराते हैं) फिर भी, अभी भी उनको देखकर मेरे पापों को मैं धो रहा हूँ। 4. जैसे मेघ पानी द्वारा, उसी प्रकार उसने धर्म द्वारा विश्व को खुश किया । 5. ग्रीष्म ऋतु में प्राणी मानो पकाए जाते हैं । धूल मानों तपाई जाती है, पानी मानों
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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