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________________ आओ संस्कृत सीखें 8. 9. - अबीभत् अदीदिपत् अचीकणत् - अचकाणत् । - अजूहवत् - अजुहावत् अजीहिठत् - अजिहेठत् अलूलुटत् - अलुलोटत् उपांत्य ऋ वर्ण का विकल्प से ऋ होता है । वृत् - अवीवृतत् - अववर्तत् । 268 कृत् - अचीकृतत्, अचिकीर्तत् । घ्रा के उपांत्य का विकल्प से इ होता है । उदा. अजिघ्रिपत्, अजिघ्रपत् । 10. स्था के उपांत्य का नित्य इ होता है । उदा. अतिष्ठिपत् । 11. स्वप् का सुपू, ह्वे का हु तथा श्वि का शु विकल्प से होता है । उदा. असूषुपत् । अजूहवत् । अशूशवत् । अशिश्वयत् । 12. पा (पीना) का पीप्य होता है और द्वित्व नहीं होता है । - अबभाषत् । अदिदीपत् । उदा. अपीप्यत् आशीः कारि + यात् - कार्यात् कार्यास्ताम् कार्यासुः आत्मनेपद कारयिषीष्ट, कारयिषीयास्ताम्, कारयिषीरन् दसवे गण में : अद्यतनी - अचूचुरत्, अचकथत्, अजीगणत्, अजगणत् इत्यादि पूर्व के प्रेरक के नियम लगाकर करें । धृ - धारण करना उदा. ध्रियते शतम् । आशी: चोर्यात्, चोर्यास्ताम्, चोर्यासुः आत्मनेपद - प्रार्थयिषीष्ट, प्रार्थयिषीयास्ताम् प्रार्थयिषीरन् 13. धारि धातु के योग में लेनदार को चतुर्थी होती है । (गण 6, आत्मनेपद) - ध्रियमाणं शतं प्रयुङ्क्ते इति - धारयति शतम् । चैत्राय शतं धारयति चैत्रः चैत्र के 100 रुपए मैत्र धारण करता है।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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