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________________ आओ संस्कृत सीखें पाठ 35 इच्छादर्शक् (सन्नन्त प्रक्रिया) तुम् प्रत्यय के योग्य धातु से इच्छा के अर्थ स ( सन्) प्रत्यय होता है । स् के पहले सेट् धातुओं को इ लगाएँ, अनिट् को न लगाएँ और वेट् को विकल्प से लगाएँ । शोभितुमिच्छति, शुभ् + इ + स । शचितुमिच्छति, शी+इ+स स (सन्) अंतवाले धातु का एकस्वरी आद्य अंश द्विरुक्त होता है । उदा. शुशुभ + इस = शुशोभिष । शीशी + इस = शिशयिष । 3. शुशोभिष + अ (शव) + ते = शुशोभिषते । शिशयिषते । अकारांत धातु से अशित् प्रत्यय आने पर अंत्य अ का लोप होता है । उदा. शुशोभिषिष्यते, शुशोभिषिषीष्ट । अटिटिषिष्यति, अटिटिष्यात् - स्वरादि धातुओं का एकस्वरी द्वितीय अंश डबल होता है अटिटिष - अटिटिषति । कित् विधि अटिष रुद्, विद्, मुष्, ग्रह, स्वप् और प्रच्छ् धातु से स (सन् ) और त्वा ( क्त्वा ) प्रत्यय कित् की तरह होते है । कित् होने से गुण नहीं होगा और य्वृत् होगा। उदा. रुदित्वा = रुरुदिषति । विदित्वा = विविदिषति । 1. 2. 4. 5. 6. 7. 8. 256 1. मुषित्वा = मुमुषिषति । गृहीत्वा = जिघृक्षति । सुप्त्वा = सुषुप्सति । पृष्ट्वा = पिपृच्छिषति । नाम्यंत धातुओं से अनिट् स ( सन्) कित्वत् होता है । उदा. निनीषति, तृ - तितीर्षति, ते नामि उपांत्य धातुओं से अनिट् स ( सन्) कित्वत् होता है । भिद् – बिभित्सति, बुध् - बुभुत्सते । ग. 4 दीर्घ विध धुड् आदि स (सन्) पर स्वरांत धातु, हन् धातु और इ धातु के गम् (गमु) आदेश का स्वर दीर्घ होता है । तन् का विकल्प से दीर्घ होता है ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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