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________________ आओ संस्कृत सीखें 235 तद्धित प्रत्यय पर न् कारांत नामों का अपद में रहा अंत्य स्वरादि अवयव का लोप होता है। उदा. उपराजम् । 19. परि और अप के साथ जुडे नाम के साथ पंचमी विभक्ति होती है, परंतु वह नाम 'वर्य' हो तो, उदा. परि अप वा पाटलिपुत्राद् वृष्टो मेघः । __पाटलिपुत्र को छोड़कर मेघ बरसा । 20. 'अवधि' अर्थ में वर्तमान में नाम से आ के योग में पंचमी विभक्ति होती है। उदा. आ मुक्तेः संसारः । मुक्ति तक संसार है । आ कुमारेभ्यो यशो गतं गौतमस्य । (कुमार तक गौतम का यश फैला) अवधि शब्द के दो अर्थ होते हैं - मर्यादा या अभिविधि आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो मेघः (यहाँ दोनों अर्थ ले सकते हैं ) 21. प्रभृति अर्थवाले शब्द, अन्य अर्थवाले शब्द, दिक् शब्द तथा बहिस् आरात् व इतर शब्दों के योग में पंचमी होती है । उदा. ततः प्रभृति । ग्रीष्माद् आरभ्य । मैत्रात् अन्यः, चैत्रात् भिन्नः । ग्रामात् पूर्वस्यां दिशि वसति । पश्चिमः रामात् युधिष्ठिरः। प्राग्र ग्रामात्, बहिर्गामात् आराद् ग्रामात् क्षेत्रं, चैत्रात् इतरः । शब्दार्थ अञ्जलि = अंजलि (पुंलिंग)| वार्धि = समुद्र (पुंलिंग) अत्यय = नाश (पुंलिंग) | शलभ = पतंगा (पुंलिंग) त्रिगर्त = एक देश (पुंलिंग) | जाह्नवी = गंगा (स्त्री लिंग) पुरन्दरः = इन्द्र (पुंलिंग)| शासन = आज्ञा (स्त्री लिंग) राघव = राम (पुंलिंग)| आशंस् = कहना, (गण 1 परस्मैपद)
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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