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________________ आओ संस्कृत सीखें करता हुआ सभा में गया (इ) 2. वे वृक्ष हैं, जिनके ऊपर हम दोनों, बंदर की तरह स्वतंत्र रूप से खेलते थे । (रम्) 3. तुमने किस सुभग को दृष्टि से पीया है, (पा) जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हुई है ? (भू) 4. हे सुभ्रु ! क्या तूने किंपाक का फल तोड़ा (छो) और सूंघा या सप्तछद पुष्प तोड़ा और सूंघा जिस कारण तू इस प्रकार दु:खी हुई है । (आर्ती भवसि ) वह बहुत देशों में घूमा है (भ्रम्) ( गण 4) और उसने बहुत ही आश्चर्यकारी वस्तुएँ देखी है। (दृश्) 5. 6. 9. 216 7. मैंने पाप किया नहीं (कृ) तो फिर मैं दुःख के गर्त में क्यों गिरा ? (पत्) 8. उसने हाथ द्वारा मूछ का स्पर्श किया (स्पृश् ) और उसके बाद धनुष का स्पर्श युद्ध में जो भाग गए (नश्) उन्हें मैंने मारा नहीं (हन्) तथा मैं भी युद्ध में से भागा नहीं (नश्) । 1. 10. सिंह के भय से हाथी भाग गए (दु) । रहने के लिए (स्थातुम्) उन्होंने इच्छा नहीं की । (कम्) 2. किया (स्पृश्) । भुजा के बल से गर्व करते थे (दृ) और मंत्र - अस्त्र द्वारा गर्व करते थे, उन सब को राजा ने वश में किया । हिन्दी में अनुवाद करो ? मा कार्षीत्कोऽपि पापानि मा च भूत्कोऽपि दुःखितः । मुच्यतां जगदप्येषा, मति मैत्री निगद्यते ।। राम इव दशरथोऽभूद्दशरथ इव रघुरजोऽपि रघुसदृश: । अज इव दिलीपवंशश्चित्रं रामस्य कीर्तिरियम् ।। 3. वैराग्यरङ्गः परवञ्चनाय, धर्मोपदेशो जनरञ्जनाय । वादाय विद्याध्ययनं च मेऽभूत् कियद्भुवे हास्यकरं स्वमीश ! || 4. हृदये वससीति मत्प्रियं, यदवोचस्तदवैमि कैतवम् । 5. जीवितेनाऽमुना किं मे, तपसा भूयसाऽपि किम् ? श्रुतिगोचरमायासीत् स्वसूनोर्यत्पराभवः ।।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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