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आओ संस्कृत सीखें
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शब्दार्थअश्ववार = घुड़सवार (पुंलिंग)। वारण = हाथी (पुंलिंग) असु = प्राण (पुंलिंग) | संमद = हर्ष
(पुंलिंग) खल = दुर्जन (पुंलिंग) क्षोभ = खलभलाहट (पुंलिंग) गण्ड = गाल (पुंलिंग) | रेखा = रेखा (स्त्री लिंग) दर्प = अभिमान (पुंलिंग) कटक = सैन्य (नपुं. लिंग) जयकेशिन् = एक राजा (पुंलिंग) | बिस = कमल का दंड (नपुं. लिंग) न्यास = न्यास (पुंलिंग) | ध्रुव = निश्चय (विशेषण)
धातु अव+मन् = अपमान करना नि+गुह् = आच्छादित करना आ+विश् = आवेश करना प्रति+पद् = स्वीकार करना उप+यम् = लग्न करना (आत्मनेपद) व्या+हन = व्याघात करना उप+रुध् = आग्रह करना
शप् = शाप देना गण १ परस्मैपदी कुष् = खींचना गण ९ परस्मैपदी
संस्कृत में अनुवाद करो 1. जिसने समुद्र को दुहा (दुह्) (परस्मै) और पृथ्वी को दुहा (दुह् आ) उस
जयकेशी राजा की यह पुत्री है। 2. राजा भोजन आदि में राग नहीं करता था (रज्) जलक्रीड़ा आदि क्रीड़ाओं से
खेलता नहीं था (दिव्) और कामविकार की चेष्टा को रोकता नहीं था (रुध्)। 3. उस कन्या ने मेरा पति कर्ण ही हैं' - ऐसा जाना (बुध् ग.4) अत: तू भी उस
कन्या को वैसा मान (बुध्)। 4. हे राजन् ! इस कन्या के विषय में आप अंतराय व्याघात न करो!
(मा व्या+हन्)। 5. वचन द्वारा किसी के मर्म को तुम मत भेदो (मा भिद्) 6. मैंने तुम को अभी याद किया (स्मृ) और तुम अभी दिखाई दीये । (दृश्) 7. दमयंती ने हंस से प्रशंसा सुनी (श्रु) और मन से नल को वरी । (वृ)