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________________ संपादक की कलम से.... संस्कृत भाषा ज्ञान की आवश्यकता - पूज्य पंन्यास श्री रत्नसेनविजयजी म. तारक तीर्थंकर परमात्मा जगत् के जीवों के कल्याण के लिए धर्मोपदेश देते हैं। वास्तविक मोक्षमार्ग दिखलाकर परमात्मा जगत् के जीवों पर जो महान् उपकार करते हैं, उसकी तुलना अन्य किसी से नहीं की जा सकती है। भूखे को भोजन देने से, प्यासे को पानी पिलाने से, वस्त्र रहित को वस्त्र देने से उपकार अवश्य होता है, परंतु वह उपकार क्षणिक और अस्थायी है। क्योंकि भूखे को भोजन देने से उसकी भूख अवश्य शांत होती है, परंतु कुछ देर के लिए । १०-१२ घंटे का समय बीतने पर भूख की पीड़ा पुनः जागृत हो जाती है। परंतु तारक परमात्मा जो मोक्षमार्ग बताते हैं, उसकी विशेषता यह है कि वहाँ सभी समस्याओं का सदा के लिए अंत हो जाता है। वहाँ सदा के लिए भूख की पीड़ा शांत हो जाती है। जहाँ समस्याओं का पार नहीं, उसी का नाम संसार है और जहाँ समस्याओं का नामोनिशान नहीं, उसी का नाम मोक्ष है। अरिहंत परमात्मा ने जो मोक्षमार्ग बताया उसी मार्ग को गणधर भगवंत सूत्र के रूप में गूंथते हैं, जिसे द्वादशांगी भी कहते हैं। __ इन द्वादशांगी रूप आगमों की मुख्य भाषा अर्धमागधी अर्थात् प्राकृत है और उनके ऊपर जो टीकाएँ-विवेचन लिखे गए, उनकी भाषा मुख्यतया संस्कृत है। सारांश यह है कि यदि आपको वीतराग परमात्मा कथित मोक्षमार्ग को जाननासमझना है तो आपको संस्कृत-प्राकृत भाषा का ज्ञात होना अनिवार्य है। विक्रम की 17वीं - 18वीं सदी तक हुए अनेक अनेक महापुरुषों ने मोक्ष-मार्ग की आराधना-साधना हेतु जो भी ग्रंथ रचे, उनकी मुख्य भाषा संस्कृत या प्राकृत ही थी। उसके ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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