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________________ शुभ कामना लेखक : पूर्वदेश कल्याणकतीर्थोद्धारक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय मुक्तिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यप्रवर श्री हेमचन्द्रसूरिजी महाराजा ने श्री सिद्धहेम व्याकरण का निर्माण किया। जो महाग्रंथ ६ हजार गाथा प्रमाण है। टीका के साथ अठारह हजार गाथा प्रमाण भी होता है। कहा जाता है कि चौलुक्य चूडामणि महाराजा कुमारपाल ने छ हजार श्लोक प्रमाण सिद्धहेम व्याकरण को कण्ठस्थ किया था एवं व्याकरण संशुद्ध संस्कृतभाषामय साधारण जिन स्तवन की इतनी सुंदर रचना की थी कि जो रचना आज जैनशासन के बड़े बड़े विद्वान आचार्य के श्रीमुख से भी सुनने को मिलती है। | व्याकरण सीखे बिना संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व पाना मुश्किल है लेकिन सभी की यह ताकत नहीं होती है कि वे व्याकरण कण्ठस्थ कर संस्कृत भाषा में निष्णात बन सके। संस्कृतप्रेमी विद्यार्थियों के लिये अणहिलपुर (पाटण) निवासी विद्वान पंडित श्री शिवलाल नेमचंद शाह ने व्याकरण के अति उपयोगी नियमों को गुजराती भाषा में परावर्तित कर हैम संस्कृत प्रवेशिका नामक अध्ययन बुक बनायी जिस के तीन भाग है प्रथमा, मध्यमा एवं उत्तमा । | संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिये पहले भांडारकर की टेक्सबुकों का उपयोग होता था, आज पूरे जैन समाज में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका एवं मुमुक्षुगण पं. शिवलाल की बुक का उपयोग करते है। __लेकिन जो साधु-साध्वी या मुमुक्षु हिन्दीभाषी होते है उनको गुजराती बुक को पढ़ना बहुत ही मुश्किल होता था । इस बात का अनुभव आज तक बहुत से विद्यार्थियों को बहुत बार हो चुका था फिर भी इस दिशा में निर्णयात्मक कदम उठाने की पहल आज तक किसी
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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