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श्री विचार शाशिका. हवे तेना शमी कहे छतिरिअनराएमुर.लं वे उध्वं देवनारगाणं च । तिरियनराणं पितहा तल्लद्धिजुयाए तं भणियं ॥ ५ ॥ ____ अर्थ-तिर्यंच अने मनुष्यने औदारिक शरीर होय छे, देवताओ अने नारकीओने वैक्रिय शरीर होय छे. तेमज वैक्रिय लब्धिवाळा केटलाक तिर्यच अने मनुष्योने पण वैक्रिय शरीर होय छे. (५) चउदसपुपिजईणं होइ आहारगं न अनेसिं। ते अकम्मण भणि संसारत्थाण जीव.णं ॥ ६॥
अर्थ-चौद पूर्वने धारण करनारा मुनिओने आहारक शरीर होइ शके छे, ते सिवाय बीजाने ते (आहारक) शरीर होतुं नथी. तथा तैजस अने कामण ए बेशरोर सर्वे संसारी जोवोने (चारे गतिवाला जीवोने) होय छे एम का छे. ६.
हवे ते पांचे शरीरनो विषय कहे छ:-- ओरालियस्स विसओ तिरिय विज्जाहराणमासज।.. आनंदीसर गुरुओ जंघाचारणाण आरुयगो ॥ ७ ॥
अर्थ- औदारिक शरीरनो विषय विद्याधरोने आश्रीने तीर्थो उत्कर्षथी नंदीश्वरद्वीप मुधो छ, तथा जंघाचारण मुनिने आश्रीने (उत्कर्षथो) रुचक पर्वत सुधी छे. (७) उड़ उभयाणं पिय आपंडगवणं सुए सया भणिओ। विउवियस्स विसओ असंखदीवा जलहिणो य ॥८॥ ___ अर्थ-ऊंचे गति करवामां ते बन्नेनो एटले विद्याधर अने जंघाचारण मुनिनो विषय मेरु पर्वत उपरना पंडक नामना वन मुधो छे, एम सिद्धान्तमां कयुं छे. वैक्रिय शरीरनो विषय असंख्य द्वीप समुद्र सुधी छे. ८...