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श्री कारस्थिति प्रकरण. क्षामंडप २, चैत्यस्तूर ३, चैत्यक्ष ४, महेन्द्रध्वज-५, अने पुष्क रिणी ( वाव ) र छ पदार्थों रहेळा छे. तेषां मुखमंडप अने प्रेक्षामंडप सो योजन लांबा, पचास योजन पहोळा अने सोळ योजन उंचा छे. चैत्यस्तूप सोळ योजन लांबा अने सोळ योजन पहोला छे. चैत्यक्ष अने महेन्दध्वजनी पीठीकामो आठ योजन लांबी पहोळी छे, अने पुष्करिणो वावो सो योजन लांबी पहोळी अने दश योजन उंडी छे. आ पर्वत उपरनी वावोमां मत्स्य विगेरे जळचर प्राणीओ छे, एम प्रज्ञापनाना त्रीजा पदनी वृत्तिमां का छे. चैत्यक्ष अने इन्द्रध्वननुं प्रमाण जीवाभिगम उपांगयी जागी लेवु. आ प्रमागे वीश सिद्धायतनोनु स्वरूप ठाणांगमां अने जिवाभिगममां का छे. ५४. ___ इवे रतिकर पर्वतो विषे कहे है:नंदी विदिसि चरो दसिंगसहस्सापिहुच्चपाऊहे। झल्लरिस अ चेइ रहकर ठाणंगिसुत्तम्मि ॥ ६ ॥ ___ अर्थ-नंदीश्वर द्वीपनी चारे विदिशमां चार रनिकर पर्वतो के. वे पर्वतो पण चैत्यो रहित छे. प्रवचन सारोद्वारादिक ग्रंथने अनुसारे तो चार वावोना आंतरामांचे बे रतिकर पर्वतो रहेला छे (आ प्रमाणे एक दिशामा चार वावो होगायी आठ रतिका पर्वतो छे. ) एक दिशामां जेवू कडूं, तेज बीजी त्रण दिशामां होवाणी सर्वेमळीने बत्रीश रतिकरपर्वतो सिद्धायतन सहिन ले. हवे प्रथम कहेला चार रतिकर पर्वतोनु तथा अन्य आचायना मते बत्रीश रतिकर पर्वतोनुं एक सरखुज प्रमाण छे, ते कहे छेदश हजार योजन पहोळा अने दश हजार योजन विस्तारवाळा एटले लांबा, गोळ, एक हमार योजन उंचा अने एक हजार यो. जनना चोया भागे एरछे अढीसो योजन भूमिनी अंदर रहेला