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श्री कायस्थिति प्रकरण. मासादा होय छे, अने चार पंक्ति होय छे त्या त्रणसोने एकताळीश ३४१ प्रासादो हो रछे अहीं चार पंक्तिनी संख्या पही त्रण पंक्ति. नी संख्या कहेवी जोहर, छतां तेम न कयु तेनुं कारग मूठ गाथा एवा व्यतिक्रमथी रचेली छे ते समन, ३३.
आगे प्रकारमां- रेकमांदरेक दिशार केटला केटला प्रासादो होय छे ? ते कहे छे:-- पगसीई एगवीसा पण मी पुण एगचत तिसईए। तेरस सय पगसठा तिसई इगचत पइक कुहं ॥ ३४ ॥ ___ अर्थ-त्रण पंक्तिवालामा दरेक दिशामां एकवीश एकवीश प्रासादो होवाथी (मूळ प्रासाद सहित) पंचाशी प्रासादो थाय छे. तथा चार पंक्तिवानामां ए दरंक दिशामां पंचाशी पंचाशी प्रासादो होवाथी मूळ प्रासाद सहित त्रणसोने एकताळीश प्रासादो थाय छे, तथा पांच पंक्तिवाला विमानोने विषे दरेक दिशाओमां मध्यवर्ती पासादो सहित गसो एकतालीश प्रासादो होगाथी एकहजार त्रणसोने पांसठ १३६५ प्रासादो थाय छे. ३४.
। इति पञ्चमं प्रासादद्वारम् । ५। हवे किरणप्रसर नामर्नु छठं द्वार कहे. छे. तेमां प्रथम सूर्यनो पूर्व, पश्चिम, दक्षिण अने उत्तर दिशानो विभाग देखाडे छे. पिट्ठ पुन्वा पुरओ अवरा वलए भमंतसूरस्स । दाहिणकरंमि मेरु वामकरे होइ लवणोही ॥३५॥ ___ अर्थ-मेरुपर्ववनी चोवरफ प्रदक्षिणा फरता सूर्यनी पाछळ पूर्व दिशा ने सन्मुख पश्चिम दिशा होय छे. सूर्यना जमणा हायं तरफ मेरुपर्वत रहे छे. अने वाम ( डावा) हाथ तरफ लवण समुद रहे छे. आ सूर्यनी ( पोतानी) दिशाओ छे. पण लोकोनी दिशा नथी. लोकोनी दिशा सूर्यनी अपेक्षाएज होय छे. सर्व क्षेत्रोमा ते