________________
(२६)
मूल तथा भाषांतर.. पचीस हजार, पांचसोने चालीश छे. तथा व्यंतर अने ज्योतिपिना भुवनोने विषे असंख्य शाश्वती प्रतिमाओ छे. कारण के ते. मना निवास स्थानोज असंख्याता छे. आविषे वीजा ग्रंथमा व्यंन्तर अने ज्योरिष्क सिवायना बीना सर्व स्थओनी शाश्वती प्रतिमाओ "पंदरसो करोड (पंदर अबज), बेतालीश करोड, अहावन लाख, छत्रीश हजार ने अंशी तीर्थकरना बिबोने हुं प्रणाम करूं छु,” ए प्रमाणे संख्या जोवामां आवे छे. तो ते ग्रंथना अभिपाये तेटली संख्या जाणवी, अने आ ग्रंथने अभिप्राये आटली-अहीं कही तेटली संख्या जाणवी. ३-४.
हवे अशाचती प्रतिमाओ कहे छे:तह चेव जंबूद्दीवे धायइसंडे य पुख्खरद्धे अ। भरहेरवयविदेहे गामागरनगरमाईसुं ॥५॥
अर्थ तथा जंबूद्वीपने विषे, धानको खंडने विषे, पुष्करार्धने विषे, भरत, ऐरवत अने विदेह क्षेत्रने विष तथा ग्राम, आकर (खाणा) अने नगरादिकने विष. ५.
ए सर्वमां शुं छे ? ते कहे छ:सुरमणुएहिं कयाओ चेइ गिहचेइमुंजा पडिमा । उक्कोस पंचधणुसय जाव य अंगुट्ठपवसमा ॥६॥ . ... अर्थ- पूर्व कहेला स्थानोने विषे केटलीक देवताओनी करेली एटले विद्युन्माली देवताए श्री महावीर जीवित स्वामीनी' प्रतिमा को हती तेनी जेम अनेक देवताओनी करेली अने केट. लीक भरतचक्री विगेरे मनुष्योए (राजाओए) करावेली अष्टापद पर्वतपर रहेलो चोवीश तीर्थंकरोनी प्रतिमाओनी जेम तथा केट
जे भगवंतनी हयातिमा तेमनी प्रतिमा भराववामां आवे से जीवित स्वामीनी प्रतिमा कहेवाय छे..