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श्री पंच निग्रंथी प्रकरण.
अर्थः- निग्रंथोनुं जघन्य एक समयनुं अने उत्कृष्ट छ महि नानुं. बाकीना चारने अंतर नथी. ९५.
विवेचनः - निग्रंथने जघन्यथी एक समयनुं अंतर अने उत्कृ पृथी ६ मासनुं अंतर. बाकीना बकुश, प्रतिसेवा कुशील, कषाय कुशील तथा स्नातकने अंतर नथी. महाविदेहमां सदा सत्ता छे ते माटे. ए प्रमाणे अंतरद्वार कहां. ९५.
der कसायमरणे तिन्नि पुलायस्य हुंति समुग्धाया । पंचासेवग बरसे, वेउब्विय तेयगेहिं सह ॥ ९६ ॥
वेण वेदना समुद
घात
कसाय - कषाय समु
दुधात मरणे - मरण ममुद्धात
तिन्नि त्रण
आसेवग - प्रतिसेवा कु·
शील
हुति - होय छे
समुग्धाया-समुद्घात पंच-पांच
संह साथे
अर्थः- पुलाकने वेदना, कपाय अने मरण ए त्रण समुद् घात होय छे. प्रतिसेवा कुशील तथा बकुशने वैक्रिय अने तेजस साथै पांच समुद्घात होय छे. ९६
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defore ear तेयगेर्हि तेजस
विवेचनः - पुलाकने वेदना समु० कषाय समु० अने मरण समु० एत्रण समुद्घात होय. संजलन कषायोदयथी कषायसमुद्घात संभवे तथा पुलाकने मरण नथी तोपण मरण समुदघावनो विरोध नथी जे माटे समुद्घातथी निवर्ती कपाय कुशीलादिक पामीने मरण पामे. तथा प्रतिसेवा कुशील अने वकुशने वैक्रिय अने आहारक वधारतां पांच समुद्घात होय. ९६
आहारएणं सहिया, कसाइणो छ नीयंटए नत्थि । केवलिय समुग्धाओ, इक्को वि य होइ व्हायरस ॥ ९७ ॥
॥ दा. ३१ ॥