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मूल तथा भाषांतर.
शके तेवी लब्धिको होय ते लब्धि पुलाक कहेवाय छे. ७ आसेवणापुलाओ, पंचविहो नाणदंसण चरिते । लिंगंमि अहासुमे य होइ आसेवणा निरओ ॥ ८ ॥
( २४३ )
आसेवना-आसेवना
पुलाओ पुलाक
पंचविहो - पांच प्रकारना लिंगमि-लिंगमां
आसेवणानिरओ -आ.
नाण- ज्ञान
अहासुहं यथासूक्ष्म
सेवनामां रक्त-रातों
अर्थः- आसेवना पुलाक पांच प्रकारे-ज्ञान, दर्शन, चारित्र लिंग अने यथासूक्ष्ममां आसेवना निरत होय छे. ८
दंसण - दर्शन
चरिते चारित्रमां
-य-अने. होइ-छे
विवेचनः - हवे पुलाकना वे मेदमांथी बीजा असेवना पुलाकना पांच प्रकार छे, तेनां नाम नीचे प्रमाणे:- १ ज्ञान पुलाक, २ दर्शन पुलाक, ३, चारित्र पुलाक, ४ लिंग पुलाक, ५ यथासूक्ष्म पुलाक. ८
नाणे दंसण चरणे, ईसीसि विराहियं असारो जो । सोनाणाइ पुलाओ. भण्णइ नाणाई जं सारो ॥ ९ ॥
नाणे- ज्ञानमां
असारो - असार
जो-जे
सोते
नाजाइ - ज्ञानादि
पुलाओ-पुलाक
दंसण-दर्शन मां
चरणे - वारित्रमां
भण्णा - कहेवाय छे.
इसी सि-लगारलगार बिराहियं विराधना
जं-जे कारण माटे साधे-सार
अर्थ: - ज्ञान, दर्शन, चारित्रमां लगार लगार विराधनाथा जे असार थाय ते ज्ञानादि पुलाक, जे कारग माटे ज्ञानादिक वे सार कहेवाय छे, ९
विवेचनः - ज्ञानने विषे जे लगार लगार विराधना करे ते ज्ञान पुलाक; दर्शनने विषे जे लगार लगार विराधना करे ते दर्शन पुलाक, चारित्रने विषे जे लगार लगार विराधना करे ते