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मूल तथा भाषांतर. (२४१) निथना पांच प्रकार कहे छ:पंच नियंठा भणिया, पुलाय बउसा कुशील निग्गंथा। होइ सिगाउयं तहा, इविको सो भवे दुविहो॥४॥ पंच-पांच कुशील-कुशील
तहा-तथा नियंठा-निग्रंथ निग्गंथा-निग्रंथ
एकिको एक एक भणिया-कला छे.
सौ-ते होइ-छे पुलाय-पुलाक
भवे छे . बउसा बकुश । सिणाउयं-सातक | दवि-2 प्रकारे
अर्थ:-(तीर्थकरे) पांच (पकारना) निग्रंथ कह्या छ-१ पुलाक २ बकुस, ३ कुशील, ४ निग्रंथ तेमज पांचमो स्नातक. ते दरेकना बबे प्रकार छे. ४ हवे निग्रंथ शब्दनो अर्थ कहे छ:गंथो मिच्छत्त धणाइ, उभओ जे अ निग्गया तत्तो । ते निग्गंथा वुत्ता, तेसिं पुलाओ भवे पठमो ॥५॥ गंथो ग्रंथ | अ- अने
| वुत्ता-करा छे. भिच्छत्त-मिथ्याश्य निग्गया-निकल्या तेति-ते ओमां धणाई-धन तत्तो-तेथी
पुलाओ-पुलाक उमओ-नेमांथी ते-तेओ
भवे-छे जे-जेओ
| निग्ग्रथा-निग्रंथो । पठमो-प्रथम अर्थ:-मिथ्यात्व अने धनादि वे प्रकारना ग्रंथमांथी जे निकळ्या तेथी तेओने निम्रन्थ कह्या छे. तेओमां प्रथम पुलाक निर्यन्य जाणवो. ५.
विवेचन:-ग्रन्थ एटले गुंथावं. जेनाथी कर्मे करो जीव गुंथाय ते ग्रन्थ. तेना बे प्रकार छे. १ भावग्रन्थ, २ द्रव्य ग्रन्य. मिथ्यात्वादि भाव ग्रन्थ जाणवा. २ धनादि एटले धन स्वजनादि द्रव्य अन्य जाणवा. आ बंने प्रकास्ना अन्योने छोडीने जे नोकळ्या