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मूड तवा भाषांतर.
(२३१)
ठाणे
चरमगुणेऽसिद्धत्तं, मणुाण गई तहा य उदयमि। आपतिलेसा-प्रथमनी | पम्हा-पालेश्या ना त्रण पण लेश्या
अठमनवमे-आठ | तिन्नेव-प्रण अभावे-अभावथी । अने नवमे
चरमगुणे-छेल्ळा गु. बारसभेया-बारभेद | आइम-प्रथमना भवंति-होय. तियग-त्रण
असिद्धत्तं-असिद्धत्व
मणुभाणगइ-मनुष्य. सत्तमए-सातमे गुणः | वेयतिग-वेदत्रिक
नी गति ठाणे चत्तरि-चार
तहा-तथा तेउ-तेजो उवरिमतियगे-उपर- | उदयंमि-उदयमां
अर्थ-प्रथमनी त्रण लेश्याना अभावयी सातमे गुणठाणे पार भेदो होय. तेमांथी तेजो अने पद्मना अभावथी आठमे अने नवमे गुणठाणे दच भेद. २० प्रथमना त्रण कषाय तथा त्रण वेद विना दशमे गुणठाणे चार. उपरना त्रण गुणठाणे लोभ विना त्रण होय. २१. छेल्ले गुणठाणे असिद्धत्व क्या मनुष्यगति औ. दयिक भावे हाय.
विवेचन-छठे गुणठाणे कहेला पंदर भावमांयी पथमनी त्रण लेश्या विना बाकीना बार भाव सातमे गुगठाणे होय. ते आ प्रमाणे असिद्धत्व, त्रण शुभ लेश्या, चार कषाय, मनुष्यगति अने वेद त्रण. प्रथमनी त्रण लेश्यानो उदय छठा गुणठाणा सुधीज होय. तेमाथी तेजो अने पद्म ए बे लेश्या विना बाकीना दश भाव आ. उमे तथा नवमे गुणठाणे होय. आठमेथी श्रेणी मांडे अने श्रेणी तो शुकल लेश्याएज होय माटे दशमे गुणठाणे प्रथमना त्रण कषाय एटले लोभ सिवायना तथा स्त्री पुरुष अने नपुसक ए त्रण वेद विना बाकीना असिद्धत्व, शुकललेश्या, संज्वलन लोभ तथा मनुप्यगति ए चार औदयिक भाव होय. अगिआरमे, बारमे तथा तेरमे गुणगाणे लोभ विना बाकीना त्रण भाव.. असिद्धत्व, शुक्ललेश्या वया संचलन लोम-रेल्ला अयोगी केवली गुणठाणे असि