________________
मूल तथा भाषांतर.
ww
( १२७ ) औदयिक भावे गति, पारिणामिक भावे जीवत्वादि एत्रण भावो होय छे:-११-१२.
गुणस्थानकमां भावना मूलभेदनी भावना:
गुण० मि०, सामि० प्र० दे०प्र० अप्र० अपू० अनि० सू० उ० यी० स०अ० मूलभा० | ३ ३ ३ ५/५ ५. ५ ५
५।५ ४ ,
वे गुणस्थानकने विषे उत्तरभेद कहे छे:मिच्छे तह सासाणे, खाओसमिया भवंति दस भेया । दाणाड़ पणग चक्खुय, अचक्खु अभाणतिअगंच ॥ १३॥
मिच्छे-मिथ्यात्वे
भवंत होय छे
च-चक्षुदर्शन
दसभेया- दशभेदो
अवरूख - अचक्षुदर्शन
दाणार पणन-दानादि अन्नाणतिअगं- अज्ञापांच नत्रिक.
अर्थः- मिथ्यात्वे तेमज सास्वादने क्षायोपशमिक भावे दानादि पांच (दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य ) लब्धिओ, दर्शन, अचक्षुदर्शन अने अज्ञानत्रिक (मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान अने विभंगज्ञान ) ए दश भेद होय . १३.
मिस्से मिस्सं सम्मं, तिदस दाणाइ पणग नाणतिगं । तुरिए बारस नवरं, मिस्स च्चारण सम्मत्तं ॥ १४ ॥ दाणाइ पणग-दानादि पांच
मिस्से - मिश्र गुणठाणे मिस्सं - मिश्र, क्षायोपशमिक
! नवरं पटलं विशेष मिस्सच्यापण- मिश्र
तह तथा
सासाणे - सास्वादने खाओसमिया क्षायो.
पशमिक
1
माणति - ज्ञानत्रिक
ना त्यागरूप
तुरिप- चोथे गुणठाणे : सम्मतं समकित
सम्म सम्यकत्व तिस-त्रण दर्शन
बारस-बार
9
अर्थ - मिश्रगुणठाणे मिश्र समकित ऋण दर्शन, दानादिपांच, ज्ञानत्रिक ए बार तथा चोथामां पण बार. विशेष एटल के मिश्रना त्यागवडे समकीत कहेतुं. १४