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________________ मलती भाषांतर, (२१५) ए प्रमाणे आ आग्द्वारोने विषे औपऽशमिकादि भावोने - नुक्रमे कोशे. मिच्छे सासणमीसे, अविरयदेसे पमत्तअपमत्तेवि । निअहि अनिअहिसुहुम-वसमस्त्रीण सजोगिअजो गिगुणा ॥३॥ मिर-मिथ्यात्व अपमत्ते-अप्रमत्तसंयत उपसम-उपशांत मोह सासण-सास्वादन निअट्टि-निवृत्ति, अ.बीण क्षीणमोह मीसे-वित्री पूर्व करण सेजोगि-सयोगी अबिरय-अविरत देसे-देशविरत | अनिअट्टि-अनिवृत्ति | अजोगि-अयोगी पमत्त-प्रमतसंयत सुहुम-सूक्ष्मसंपराय | गुणा-गुणस्थान अर्थ-मिथ्यात्व, सास्वादन, मिश्री, अविरती, देशविरती, प्रमत्त संयत्त, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म संपराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सजोगी अने अयोगी ए गुण. ठाणा जाणवां. ३. विवेचन-ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रना विशुद्धि अविशुद्धि ना प्रकर्ष अपकर्षरुप अध्यवसायना तरतम भेद वे गुणस्थानक. ते भेद असंख्याता छ, अध्यवसाय असंख्याता होवाथी. पण स्थूलदृष्टिए चौद भेद जाणवा ते नीचे प्रमाणे. १ मिथ्यात्व गुणस्थान-ज्यां जिनेश्वरना वचन उपर श्रद्धान होय. खराने खोरापणे खोटाने साचा प्रमाणे माने ते. २ सास्वादन गुणस्थान-उपशम समकित वमतां मिथ्यात्वे जता अनंतानु बंधी कषायना उदयथी जीवना जे परिणाम. ३ मीश्र गु०-जिनेश्वरना वचन उपर ज्यां राग द्वेष नहोय. ४ अविरति सम्यग्दृष्टि गुरु-ज्यांत्रण प्रकारमांनुं एक समकिन होय पण विरति नहोय.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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