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निगोद पत्रिशिका.
थोत्रा जहन्नयपए निगोय मित्तावगाहणा फुसणा । फुसणाऽसंखगुणत्ता, उक्कोसपए असंखगुणा ॥ ५ ॥
थोबा-थोडा
जहन्न पप- जघन्यपदे
निगोयमित्ता- निगोद | असंखगुणत्ता --असं
माय
ख्यातगुणी
( १८७ )
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अगाहणा- अवगाहना | उक्कोसपर - उत्कृष्टफुसणा-स्पर्शना पदमां
असंखगुणा- असंख्य
गुणी अर्थ - जघन्यपदे (जीब प्रदेशो ) थोडा छे. निगोद मात्र अवगाहनानी स्पर्शना होवाथी उत्कृष्टपदे स्पर्शना असंख्यातगुणी होवाथी असंख्यगुणा छे. ५
त्रिवेचन – जघन्यपदे एक प्रदेशमां जीव प्रदेशनी संख्या थोडी छे. कारण तेनी ( जघन्यपदनी ) निगोद जेटली अवगाहनानी स्पर्शना के.
एक निगोदनी अवगाहना अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली छे. ते निगोद जेटला आकाश प्रदेशर्मा त्यांज-बीजा आकाश प्रदेशना स्पर्शना परिहार बडे जे निगोदो रहेली के ते एकावगाहना निगोद कहेवाय छे ते एकावगाहनाचाळी निगोदोए जे आकाश प्रदेश अवगाद्या छे तेनी जघन्यपदमां स्पर्शना पण तेटली ज छे. कारणकं खंड गोला उत्पन्न करनारी बीजी निगोदोनो तेने स्पर्श नहि होवाथी भूमिना नजीकमा वनला भागनो जे खुणो ते खुणाना ठेल्ला प्रदेशरूप जयन्यपद छे. तेने अलोकनी संबंध होवाथी एकावगाहनात्राळी निगोदो ज स्पर्गे ले. पण खंड गोलाने उत्पन्न करनारी निगोदोनो तेने स्पर्श नथी. प्रदेशनी वृद्धि अने हानिवाली तुल्य अवगाहनावाळी बीजी निगोदोनी स्पर्शना त्यां नहि होवाथी.
उपरनी जवान असत्कल्पनाए समजावे छे:
परमार्थथी जघन्यपदे पण एक एक निगोदमां अन्नत जीव