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निगौद पत्रिशिकां.
( १८५ ) अर्थ - जघन्यपदे जीवमदेशो थोडा, तेथी जीवो असंख्यातगुणा तेथी उत्कृष्टपदे जीवप्रदेशो विशेषाधिक कला छे. २
विवेचन -- प्रथम गाथामां कहेल ऋण राशिमांथी जघन्यपदे ( एटले जे आकाशप्रदेशमां सर्वथी थोडा जीवप्रदेशो होय ते ) जीवंप्रदेशो थोडा. ते जघन्यपदे रहेला जीवमदेशथी सर्व जीवोनी संख्या असंख्यातगुणी छे. सर्व जीवोनी संख्याथी उत्कृष्टपदे (जे आकाशप्रदेani aarti aधारे जीवमदेशो रहेला होय ते ) जीवमदेशो विशेषाधिक. ३
१ जघन्यपदे जीवप्रदेशो थोडा तेथी २ सर्व जीवोनी संख्या असंख्यातगुणी तेथी ३ उत्कष्टपदे जीवप्रदेशो विशेषाधिक
हवे जघन्यपद अने उत्कृष्टपद क्या होय ते कहे छे. तत्थ पुणे जहनपर्यं, लोयंते जत्थ फासणा तिदिसि । छद्दि सिमुकोसपर्यं, समत्थगोलंमि नग्नत्थ ॥ ३ ॥ तत्थ - तेम
जरथ-ज्यां
समस्थ समस्त, संपूर्ण गोलंमि-गोलामां
पुण- बळी
जहन्नपयं-अघग्यपद लोयंते-लोक ने अंते
फासणा-स्पर्शना तिदिसिं त्रण दिशिनी नन्नस्थ- अन्यत्र नहि छहिसि-छ दिशानी
अर्थ - तेमां पण जघन्यपद लोक ने अंते ज्यां त्रण दिशीनी स्पर्शना होय त्यां होय छे. अने उकुस्तृपद छ दिशीनी स्पर्शनावाळा उत्कृष्टगोळामां होय छे. बीजे नहि. २
विवेचन — जघन्यपद लोकने अन्ते ज्यां निष्कुट ( खुणा ) होय छे त्यां होय छे. कारण त्यां आवेल गोळाओमां (असंख्याती निगोदनो एक गोळो थाय छे जेनुं स्वरुप आगळ कहेवाशे) केटलाकनी त्रण दीशीनी, केटलाकनी चार दीशोनी भने केटलाकनी
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