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( १८१) मुळे तथा भाषांतर. वेटला प्रथम अंकस्थानथी आरंभी मोक्षे कने सर्वार्थे अनुक्रमे जाणवा. एवो रीते बीजी दंडिकाओमां जाणी लेवु. अस्संखकोडिलक्खा, सिद्धा सवठगा य तह सिदा। एगभवेणं देविंदरदिआ दितु सिद्धिसुहं ॥ १३ ।। अस्सल असंख्यात |तह ते मज (देवेन्द्र सूरिए वाला) कोटि-कोटि
एगभवेण-एक भवमा दितु-आपो लरूखा-लाख सिद्धा-सिद्धो
| देविदव दिआ देवेन्द्रो सिद्धिसुह-मोक्षसुख. सम्बठगा-सर्वार्थगएला बडे चंदापला
अर्थ:-असंख्यात कोड लाख सिद्धो अने सर्वार्थ गएला जाणवा. एक भववडे देवेन्द्रो बडे वदाएला (देवेन्द्रमूरिए वांदला) एवा सिद्धो सिदिसुख (मोक्ष) आपो. १३. संग्रह गाथाओ:चउदसलक्खा सिद्धा, निवईणोय होइ सव्वठे। इविक्कठाणे पुण, पुरिसजुगा हुंतऽसंखिज्जा ॥ १ ॥ पुणरवि चउदसलक्खा, सिहा निवईण दोवि सन्यठे । दुगठाणेवि असंखा, पुरिसजुगा हुंति नायव्वा ॥२॥ जाप य लक्खा चउदस, सिदा पन्नास हुंति सव्वटे। पन्नासठाणेऽवि हु, पुरिसजुगा हुंतऽसं खिज्जा ॥ ३ ॥ दो लक्खा सिद्धीए, दो लक्खा नरवईण सव्वटे । एवंति लक्ख चउपंच, जाव लक्खा असंखिज्जा ॥४॥ ॥ इति देवेन्द्रसरिपाद प्रगीतः श्री सिद्धदण्डिका स्तवः समाप्तः ॥