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मूल तथा भाषांतर.
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द्वाने विषे ( क्षेत्रादि ) सर्वे द्वारने विषे सर्वत्र अनन्ता कहेवा. क्षेत्र अने स्पर्शना पूर्वनी पेठे काल अनादि रूप अनन्त कहेवो. तेथी करीने अंतरनो असंभव होवाथी अंतर न कहेवु. ३०
हवे बाकी रहेल अल्पबहुत्व द्वार परंपर सिद्धने विषे कहे छेसामुद्द दीव जल धल, धोवा संखगुण थोव संखगुणा । उड्डू अह तिरिअलोए, थोवा दुनि पुण संखगुणा ॥ ३१ ॥ लवणे कालोअम्मि य, जंबुद्दीवे य धायई संडे । पुक्खरवर दीवडे, कमसो थोवा उ संखगुणा ॥ ३२ ॥ हेमवंते हेमवए, महहिमवं कुरुसु हरि निसढ भरहे । संखगुणाय विदेहे, जंबु द्दीवे समा सेसे ॥ ३३ ॥
लवणे - लवण समुद्रमां कालोअम्मि- कालोदधिमां जंबुद्दीव-जंबुद्वीपमां धायई संडे - धातकीखंडमां
सामुद्द- समुद्र दीव-द्वीप जल पाणी
थल-स्थल
थोवा-थोडा
संखगुण संख्यातगुणा उड़-ऊर्ध्व
अह- अधो
तिरिअ-तोर्छा
दुनि-यंने
पुक्खरवर- पुष्करवर दीवडे - दीपार्ध- अर्ध
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हेमवंते- हेमवंत पर्वत हेमवए-हेमवंत क्षेत्र महहिमवं - महाहिमवंत
कुरुसु- देवकुरु हरि - हरिवर्ष
द्वीपमां
कमसो- अनुक्रमे
समा-सरखा सेसे- बाकीना
अर्थ – समुद्र, द्वीप, जल अने स्थलमां थोडा, संख्यातगुणा,
तीर्छालोकमां अनुक्रमे
थोडा अने संख्यातगुणा उर्ध्व, अधो अने थोडा अने वे ठेकाणे संख्यातगुणा. ३१.
निसढ - निषधपर्वत | भर-भरत क्षेत्र म विदेहे महाविदेहमां
लवण अने कालोदधि, जंबुद्वीप अने धातकीखंड तथा पुष्कवर द्वीपार्धमा अनुक्रमे थोडा अने संख्यातगुणा. ३२.
जंबुद्वीपमा हिमवंत पर्वत, हेमवंत क्षेत्र, महाहिमवंत पर्वत, देव