SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४४ ) सिपंचाशिका. चोथा स्पर्शना द्वारने विषे तंविवक्षित ( जे अमुक समयनी वात करी ते ) समयमां सिद्ध थएल अनंता सिद्धोने पोताना सर्व प्रदेशो वडे स्पर्शे. पण जे तेना देश प्रदेशो वढे स्पर्शाय ते असंख्यात गुणा जाणवा. ए रीते १५ द्वारने विषे मूल चोथुं स्प र्शना द्वार जाणवुं. १८. जत्थठ्ठसमयं सिज्जइ, अट्ठ उ समया निरंतरं तत्थ । वीस दसगेसु चउरो, दु सेसि जवमज्झि चन्नारि ॥ १९ ॥ अस्थ-ज्यां अठ्ठसमय - आठ समय सिम्स सीझे तत्थ - त्यां दसगेसु दश सेसि बाकीना · जबमज्झि-यषमध्यबतारि बार अर्थ-ज्यां ज्यां एक समयमां एकसो आठ सीझे त्यां निरंतरपणे आढ समय काल कहेवो. ज्यां वीस अने दश सीझे त्यां चार समयनो, बाकीनाने विषे बे समय अने यवमध्यमां चार समय निरंतरपणे काळ जाणवो. विवेचन - हषे मूल पांचमुं कालद्वार कहे छे. क्षेत्रादि पंदरे द्वारमा जे जे स्थाने एक समयमा उत्कृष्ट एकसो आठ सीझे त्यां निरंतरपणे आठ समयनो काळ कहेवो. ज्यां एक समयमा बीस सीजे त्यां चार समयनो, ज्यां एक समयमा दश सीझे त्यां पण चार समयनो निरंतरपणे काल जाणवो. बाकीना स्थाने बे समयनो निरंतर काल अने यवमध्यमां चार समयनो निरंतरपणे काळ जाणवो. आ दुकाणां कहीने हवे दरेक द्वारने विषे जुदं जुदं कहे छे: १ क्षेत्रद्वारे - पंदर कर्मभूमिमां आठ ससय सुधी निरंतर सीझे, हर बर्षादि अने अधोलोकमां चारचार समय सुधी; नंदनवन, पांडुकवन अने लवण समुद्रमां बे बे समय निरंतर पण सीझे. २ कालद्वार - उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळना त्रीजा अने
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy