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( १५८)
सिद्धपंचाशिका...
संतपय-सत्पद छर्नुपद फुसणा-स्पर्शना । तह-तथा परुषणया-प्ररुपणाय-अने
भावो-भाव दव्य पमाणद्रव्य प्रमाण| कालो-काल अप्पावहू-अल्प बहुत्व खित-क्षेत्र
अंतरं-अंतर दारा-बारो अर्थ-छतापदनी प्ररूपणा द्वार, द्रव्य प्रमाण द्वार, क्षेत्र द्वार, स्पर्शना द्वार, काल द्वार, अंतर द्वार तेमज भाव द्वार अने अल्प बहुल द्वार.. '- विवेचन-सिद्धने विषे निवेना द्वार कहे छे-१ छता पदनी मरूपणा, २ द्रव्य प्रमाण एटले केटली संख्या मोक्षे जाय, ३ कया कया क्षेत्रमाथी ते तीजु क्षेत्र द्वार, ४ सिद्धना जीवोने स्पर्शना केटली होय ते स्पर्शना द्वार, ५ काल द्वार, ६ टुं अंतर द्वार, ७ भाव द्वार अने आठमुं अल्प बहुत्व द्वार. २.
एहिं अणंतरमिन्हा, परंपरा मनिकरिम जुत्तहिं । । तेहिं विआरणिज्जा, इमेसु पनरमसु दारेसु ॥ ३ ॥ पहि-ए वारो घडे । मनिकरिस-सन्निका इपेमु-ए अणंतरसिद्धा-अनंतर- जुत्ता
पनरससु-पनर विआरणिन्ना-विचार दारेसु-धारोमा परंपरा-परंपरासिद्ध करपा योग्य
अर्थ--ए आठ द्वार द्वाराए अनंतर मिद्धनो अने सन्निकर्ष युक्त नव द्वार वडे परंपरासिद्धनो आ (आगली गाथाभां कह ते) पंनर द्वारने विषे विचार करतो. ..
विवेचन-आगली गायामां कहेला आठ द्वार वढे अनन. रसिद्धो विचारवा. एक समयनुं पण अन्तर जेओने न होय ने अनन्तरसिद्ध एटले सिद्वत्वना प्रथम समयमा वर्तता अमुक विवक्षित समये सिद्ध यएला अने ते आठ द्वार साये सनि.
सिड
पिआरोणा