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________________ (ग) यास्ककी रचनाएं प्राचीन भारतीय, महान् विभूतियों के समय , स्थान आदिके सम्बन्धमें जैसे आज भी ऐकमत्य प्राप्त नहीं होते, उसी प्रकार उनकी रचनाओंके सम्बन्धमें भी प्राय: देखने को मिलता है। कुछ रचनाएं आज भी मतान्तरोंके चक्रमें पड़ी हुई हैं। प्राचीन इतिहासकी समृद्धिका अभाव ही इसका कारण है। महर्षि यास्ककी दो रचनाएं उपलब्ध होती हैं, निघण्टु तथा निरुक्त। निरुक्त निर्विवाद रूपसे यास्ककी रचना मान ली गयी है। निघण्टुके सम्बन्धमें मत मतान्तर आज भी प्रचलित हैं। निघण्टु :- निघण्टुके सम्बन्धमें आज दो मत प्रचलित हैं प्रथमके अनुसार निघण्टु यास्कसे पूर्ववर्ती आचार्योंकी कृति है या अनेक आचार्योंकी कृति है। द्वितीय मत के आधार पर निघण्टु यास्ककी कृति है। निघण्टुके रचयिताके निर्णयमें कुछ सिद्धान्तोंकी उपस्थिति आवश्यक है। निरुक्तके प्रमुख टीकाकार दुर्गाचार्य जी निरुक्त भाष्यकी भूमिकामें कहते हैं कि पांच अध्याय वाले निघण्टुका निर्माण श्रुतर्षियों ने किया१ पुन: निरुक्तके प्रथम अध्यायके भाष्यमें लिखते हैं कि निघण्टुकी रचना श्रुतर्षियों ने की। इस मत की पुष्टिमें वे कहते हैं कि निघण्टुमें पहले 'दावने' शब्द आया है तदन्तर 'अकूपारस्य' शब्द। वेदमें इसका क्रम विपरीत हो गया है। पहले 'अकूपारस्य' शब्द आया है इसके बाद 'दावने' शब्द। अगर यास्क ही निघण्टुके रचयिता होते तो इस प्रकार क्रमका उल्लंघन नहीं करते। पुनः इसी प्रकार 'वाजस्पत्यम्' तथा 'वाजगन्ध्यम्' शब्द क्रमशः निघण्टुमें आये हैं जबकि वेदमें इसके विपरीत क्रम प्राप्त होते हैं। प्रो. कर्मर्कर भी निघण्टुको किसी एक व्यक्तिकी रचना नहीं मानते। इनका कहना है कि निघण्टुके आरंभिक तीन अध्यायोंके रचयितासे चतुर्थ अध्यायके द्वितीयपादके रचयिता भिन्न मालूम पड़ते हैं। चतुर्थ अध्यायके द्वितीय पादमें कुछ ऐसे शब्द आये हैं जो प्रारंभ के तीन अध्यायों में आ चुके हैं। यथा- स्क्सराणि अन्धः,५ वराहः,६ वयुनम् , आदि। शब्दोंके प्रयोगके आधार पर ही इनका कहना है कि चतुर्थ अध्यायके प्रथम खण्ड तथा तृतीय खण्डके रचयिता भिन्न हैं। प्रो. राजवाड़े भी निघण्टुको यास्ककी कृति नहीं मानते। स्कन्द स्वामी तथा जर्मन विद्वान् रॉथ भी इसी मतके समर्थक हैं। सत्यव्रत सामग्रमी 'समाम्नाय'शब्दको आधार मानकर ही निघण्टुको यास्क की कृतिनहीं मानते। इनके अनुसार समाम्नाय अनादि वाङ्मय वाचकशब्द है जो यास्कके ८४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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