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________________ शब्द पाणिनि व्याकरणसे ही लिए गए हैं। क्योंकि पाणिनि व्याकरण ही आदि व्याकरण है। सामश्रमी जी पुन: अपने मतकी पुष्टिमें निरुक्तमें प्रयुक्त 'अपार्ण' शब्द पर बल देते हैं तथा कहते हैं कि पाणिनिके सूत्रों में 'ऋण' शब्दके रहने पर कोई वृद्धि विधायक सूत्र नहीं प्राप्त होता। फलतः पाणिनिके समयमें प्रर्णम्, अपर्णम् ही प्रयोग होता था, जो कि वृद्धिरहित प्रयोग था। वार्तिककारके काल में. प्रवत्सतरकम्बलवसनार्णदशानामृणे'६ वार्तिक का निर्माण हुआ जिससे-प्रार्णम् , वत्सरार्णम् आदि पदों की सिद्धि हुई। इन्होंने भी 'प्र' के स्थान पर या 'प्र' के सदृश कोई अप उपसर्गका सन्निवेश अपने सूत्रोंमें नहीं किया। अतः पाणिनि यास्कसे पहले थे, क्योंकि अगर ये यास्कके बाद होते तो यास्कके अपार्णम् प्रयोगकी सिद्धिके लिए अपना मतंव्य अवश्य प्रकट करते। इसके अतिरिक्त निरुक्तमें प्रयुक्त परः सन्निकर्ष: संहिता' इस सूत्र को भी वे पाणिनिका ही सूत्र समझते हैं। इन्हीं आधारों पर पाणिनिको यास्क से प्राचीन मानते हैं। ___ मैक्समूलर, बोथलिंग आदि विद्वानोंका मत सर्वथा खंडित हो चुका है। सामग्रमीजी के मत को भी संगत नहीं माना जा सकता। इनकी उक्त स्थापना को तर्कों के आधार पर मूल्यांकित किया जाय तो पता चलेगा कि यास्क ही पाणिनिसे प्राचीन है। सामश्रमीजी का यह कहना, कि पाणिनि ही आदि वैयाकरण है और इनकी अष्टाध्यायी ही आदि व्याकरण है, एकदम निराधार है। स्वयं पाणिनिने अपनी अष्टाध्यायीमें अपने पूर्ववर्ती कई वैयाकरणोंके नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लिए हैं। पाणिनिसे पूर्ववर्ती प्रातिशाख्य ग्रन्थ हैं, जो वैदिक व्याकरण हैं। व्याकरण शास्त्र लोक प्रयुक्त शब्दोंका अन्वाख्यान मात्र है। इसका काम शब्दोंका गढ़ना नहीं है।९ शब्दोंका प्रयोग तो देश काल पात्रानुसार प्रचलित एवं अप्रचलित होता रहता है। कुछ नये शब्दोंका प्रचलन होने लग जा सकता है। कुछ प्रचलित शब्दों का प्रचलन रुक भी सकता है। इस आधार पर सत्यव्रत सामश्रमी जी के सिद्धान्तके सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि यास्क के काल में 'अपार्ण' शब्दका प्रयोग होता था, कुछ काल बाद यह अव्यवहृत हो गया। फलतः पाणिनिने 'अपार्णम्' शब्दकी सिद्धिके लिए कोई सूत्र का विधान नहीं किया। वार्तिककारके समय में प्राणम्' का प्रयोग होने लगा होगा। फलतः प्रार्णम् शब्द की सिद्धि के लिए इन्होंने वार्तिक का निर्माण किया। उनके समय में भी 'अपार्णम्' शब्द का प्रयोग होता होगा। पुनः केवल 'अपार्णम्' ही ऐसा प्रयोग नहीं है जो पाणिनीय व्याकरण से सिद्ध नहीं होते, बल्कि विचिकित्सार्थीय आदि बहुतसे प्रयोग पाणिनि व्याकरण से सिद्ध नहीं होते हैं। इन ७५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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