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________________ अतः निरुक्तकारके रूपमें यास्कको मानना सर्वथा संगत है। महाभारत, महाभाष्य आदि ग्रन्थोंमें भी निरुक्तकारके रूपमें यास्कको ही स्मरण किया गया है। निरुक्तके अन्त में उल्लिखित 'नमो यास्काय' के आधार पर यास्क नाम गोत्रापत्य मान लिया जाय तो ये यस्क के गोत्रापत्थ थे ऐसा प्रतीत होता है। पाणिनि की अष्टाध्यायीसे भी यस्क गोत्रापत्यके बारेमें पता चलता है। शतपथ ब्राह्मणसे भी यस्क के गोत्रापत्य की ही पुष्टि होती है। नम: पारस्कराय' में पारस्कर शब्दके उल्लेख से पता चलता है कि यास्क पारस्कर देशके रहने वाले थे। पारस्कर प्रमृतीनि च संज्ञायाम्' इस सूत्रके भाष्यमें महर्षि पतंजलि लिखते हैं कि 'पारस्करो देश:' अर्थात् पारस्कर देश- विशेषका नाम है। इसे भारतका ही एक प्रदेश विशेष कह सकते हैं। आचार्य जिनेन्द्रद्धिने अपनी न्यास टीकामें पारस्करकी व्युत्पत्ति- 'पारं करोतीति ऐसा कहा है। इस विश्लेषणसे पता चलता है कि पारस्कर नामका कोई ऐसा प्रदेश है जिसे कठिनाईसे पार किया जाता है। कठिनाई से पार करनेके कारण ही उस प्रदेशका नाम पारस्कर पड़ गया। भारतमें मरूस्थल की दक्षिणी छोर पर थर पारकर नामका स्थल है जिसे पार करने का मतलब सम्पूर्ण मरूस्थल ही पार करना पड़ता है। संभवतः यही यास्कका स्थान रहा होगा। देशके नामके आधार पर व्यक्तियों का सम्बोधन भी होता रहा है। आज भी ऐसी प्रथा प्रचलित है। जहानावादी, लखनवी, वनारसी, बिहारी, बंगाली, मद्रासी, अमेरिकन, यूरोपीयन आदि स्थान विशेष पर या देश विशेष पर ही अभिहित हैं। व्यक्तित्व :- निरुक्त में आये. उद्धरणों से पता चलता है कि यास्क वैदिक भाषा के पण्डित थे। भाषागत क्षेत्रीय वैशिष्ट्य का भी इन्हें पूर्ण ज्ञान था। इन्हें भाषा वैज्ञानिक भी कहा जा सकता है। लौकिक संस्कृत में सरल व्याख्यान शैली का प्रादुर्भाव यास्कसे ही, माना जा सकता है, जिसका विकसित रूप हम महाभाष्यमें पाते हैं। चारों वेदों का तो इन्होंने पूर्ण परिशीलन किया ही था साथ ही पदपाठ, तत्तरीय , मैत्रायणी आदि संहिताओं का भी इन्हें पूर्ण ज्ञान था। ब्राह्मण ग्रन्थों में एतरेय, शतपथ, कौषीतकि गोपथ आदि से ये पूर्ण परिचित थे। इन सबों के अतिरिक्त प्रातिशाख्यों, उपनिषदों, आरण्यकों के भी विद्वान थे। निरुक्त में विभिन्न सम्प्रदायों की चर्चा होती है-'वैयाकरणा:, हारिद्रविकम्१०। आख्यानसमय:११ ऐतिहासिका:१२, नैदाना:१३, नैरुक्ता:१४ परिव्राजका:१५. पूर्वेयाज्ञिका :१६याज्ञि का :१७ आदि। इन सम्प्रदायों के उल्लेख से पता चलता है कि यास्क इन सम्प्रदायों ७१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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