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________________ सिद्धांतोंका उल्लेख अपने निरुक्तमें किया है. इन्द्रियनित्यं वचनमौदुम्बरायणः तत्र चतुष्ट्वं नोपपद्यते।१९ अर्थात् वचन इन्द्रिय नियत है। अतः नामके चार भेद नहीं हो सकते। उच्चारण एवं श्रवणानन्तर वर्णोंका विनाश हो जाता है। अतः जब तक वक्ता के मुखमें वर्ण है तब तक उसकी सत्ता है, लेकिन उच्चारणके बाद ही उसका विनाश हो जाता है। फलतः उस विनाशी वर्णोंसे निष्पन्न पदके चार भेद कैसे हो सकते हैं। इस सिद्धांतसे पता चलता है कि औदुम्बरायण निरुक्त दर्शनके प्रणेता एवं विवेचक थे। शब्दोंका नित्यानित्यत्व विचार दार्शनिक आधार रखता है। शब्दोंकी सत्ताका स्थायित्व कहां तक है, इन्द्रियोंका पदोंसे क्या संबंध हैं इत्यादि विषयों पर विचार कोई शब्ददर्शनका ज्ञाता ही कर सकता है। ये शब्दको अनित्य मानते हैं जबकि प्राचीन काल से ही शब्द को नित्य माना गया है।२० लगता है कि औदुम्बरायणके निरुक्तमें वाक् से संबंधित विभिन्न इन्द्रियोंका वर्णन होगा। इनका निरुक्त आज उपलब्ध नहीं होता। यास्कके द्वारा इनके सिद्धान्तोंका उल्लेख करनेसे यह तो निर्विवाद है कि ये यास्कसे पूर्ववर्ती हैं। औदुम्बरायणका शब्दानित्यत्व पक्ष यास्क से पूर्व अवश्य ही प्रबल रहा होगा। यास्कने इनके सिद्धांतको स्वीकार नहीं किया। यास्क शब्दोंके नित्य वादको ही संगत मानते हैं। औदुम्बरायणके सिद्धान्तकी मान्यता यास्कसे काफी पूर्व होगी। अत: यदि यास्क से १०० वर्ष भी पहले इनका समय माना जाय तो ये ई.पू. ८५० के लगभग के होंगे। रचनाएँ :- इनकी रचनाओंके संबंधमें कहा जा सकता है कि निरुक्तकारके रूप में स्मृत होनेके कारण इनका ग्रन्थ निरुक्त अवश्य होगा। साथ ही इसका आधार ग्रन्थ निघण्टु भी इनकी रचनाओंमें संभावित है। ये दोनों ही ग्रन्थ आज अनुपलब्ध हैं। निर्वचन सिद्धांत :- यास्कके निरुक्तमें इनके सिद्धांतका एक बार उल्लेख हुआ है जिससे उनकी शब्द विषयक मान्यता स्पष्ट होती है। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है ये शब्द को अनित्य मानते हैं। जैसे इन्द्रियां अनित्य है उसी प्रकार इन्द्रिय नियत वचन भी अनित्य होंगे। इनका निर्वचन सिद्धांत स्पष्ट नहीं होता। (घ) वार्ष्यायणिः वार्ष्यायणि शब्दके विग्रह करने पर पता चलता है कि ये वार्ष्यायणके पुत्र थे तथा इनके पितामहका नाम वार्ण्य था- वृषस्यापत्यं वार्घ्य : वार्ण्यस्यापत्यं वार्ष्यायण:, वार्ष्यायणस्यापत्यं वार्ष्यायणि : यास्कने भावविकार विवेचनके प्रसंगमें इनकेमतका उल्लेख ५७ : व्युतगृत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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