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________________ निर्वचन एक ही प्रकार का है। दक्षिणा शब्द यज्ञके अन्त में याज्ञिकों को दिए जाने वालेधन का वाचक है। दक्षिणा शब्द का निर्वचन शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त होता है -स एष यज्ञो हतो न ददक्षे। तं देवा दक्षिणाभिरदक्षस्तद्यदेनं दक्षिणाभिरदक्षयंस्तस्माद् दक्षिणा नाम ।अथ समृद्ध एव यज्ञो भवति तस्मात् दक्षिणा ददाति उपर्युक्त अंश से पता चलता है कि दक्षिणा शब्दमें समृद्धि अर्थ वाला दक्ष धातुका योग है। जिस यज्ञ में दक्षिणा नहीं दी जाती वह यज्ञ समृद्ध नहीं होता। निरुक्त में भी दक्षिणा शब्द सम्यक् वृद्धि वाला दक्ष धातुसे ही निष्पन्न माना गया है। वह दक्षिणा निर्धनको समृद्ध बना देती है। महाभाष्यमें भी दक्षिणा शब्दको वृद्धयर्थक दक्ष् धातुसे ही निष्पन्न माना गया है। उणादिसूत्र से भी स्पष्ट संकेत मिलता है कि दक्षिणा शब्दमें दक्ष् धातु ही है।" इन निर्वचनोंसे स्पष्ट होता है कि ब्राह्मण कालसे बाद तक के निर्वचनोंमें दक्ष धातु ही मान्य है जो समृद्धिका वाचक है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे इसे उपयुक्त भी माना जायगा। __ अक्षर परिमाणको छन्द कहा गया है। छान्दोग्योपनिषद् में छन्द शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है। इसके अनुसार मृत्यु से भयभीत देवताओं ने त्रयी विद्यामें प्रवेश किया। उन्होंने अपनेको छन्दोंसे आच्छादित किया। उन्होंने जोअपनेको उनके द्वारा आच्छादित किया वही छन्दोंका छन्दस्त्व है। इससे स्ष्ट होता है कि छन्दस् शब्द में छद् धातुका योग है। वेदार्थ दीपिकामें भी छन्दको छद् धातुसे ही निष्पन्न माना गया है-'छन्दः पापेभ्यश्छादनात्' निरुक्तमें भी कहा गया है कि छादन करने से ही छन्द कहलाया।" उपर्युक्त निर्वचनोंसे स्पष्ट है कि छन्द शब्दमें सर्वत्र छदिरावरणे धातुकी ही स्थिति मानी गई है। वनस्पति शब्दका निर्वचन वृहद्देवतामें प्राप्त होता है। इसके अनुसार यह वनके पतिके रूपमें अग्नि का एक रूप है। वह वनका रक्षक है या पालका पति शब्दमें पा रक्षणे या पा पालने धातुका योग माना गया है। यह समासाश्रित निर्वचन है। निरुक्तमें-'एष हि वनानां पाता वा पालयिता वा कहा गया है। इसके अनुसार भी वनस्पति शब्द में वन+पति दो पद खण्ड हैं। ५० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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