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________________ काण्डके अन्तर्गत ही इन्हें विवेचित एवं मूल्यांकित किया गया है। दैवत काण्डके सभी निर्वचन अध्यायानुक्रमसे इस शोध प्रबंधके अष्टम अध्यायमें विवेचित हैं। भाषा विज्ञानकी विविध शाखायें आज विकसित एवं पल्लवित हो रही हैं। विभिन्न भाषाओंके सम्पर्क में लानेका श्रेय आज भाषा विज्ञान को ही है। तुलनात्मक भाषा के अध्ययन से ही स्पष्ट होता है कि किसी भाषा परिवारका क्षेत्र कितना व्यापक है। भाषा के माध्यम से देश विशेष की संस्कृतियों एवं स्थितियोंका मूल्यांकन सहज ढंग होता है। ज्ञातव्य है आधुनिक भाषा विज्ञानका स्वतंत्र अस्तित्व १९ वीं शताब्दीसे पूर्व प्राप्त नहीं था । प्राचीन भारतमें भी भाषा विज्ञानके नामसे स्वतंत्र रूपमें तो कार्य नहीं हुए, लेकिन शब्द, ध्वनि, अर्थ, पदविन्यास, वाक्ययोजना, शब्दार्थ सम्बन्ध आदि भाषा विज्ञानके विविध अंगों पर पूर्ण प्रकाश डाला गया। पाणिनि याज्ञवल्क्य, व्यास, वशिष्ट, नारद आदि के लगभग २० से भी अधिक शिक्षा ग्रन्थोंकी उपलब्धिसे स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतमें ध्वनि पर कितना अधिक काम हुआ है । १५ प्राचीन भारतमें ध्वनि शास्त्र अपने आपमें स्वतंत्र अनुसंधानका विषय है। इसी प्रकार प्राचीन भारतमें अर्थ विज्ञान पर भी स्वतंत्र कार्य देखे जाते हैं। समग्र संस्कृत साहित्य में अर्थ की प्रधानता देखी जाती है। प्राचीन भारतमें अर्थ विज्ञानभी स्वतंत्र अनुसंधानका विषय है। हम देखते हैं कि भाषा विज्ञानके सभी अंग किसी न किसी प्रकार प्राचीन भारतमें विवेचित हुए हैं। भाषा विज्ञानके विविध अंगों से निरुक्त भी सम्बद्ध रहा है। भारतमें भाषा विज्ञानका एक विशिष्ट अंग निर्वचन शास्त्र विशेष रूपमें विवेचित है। इस प्रकार की विवेचना विश्वकी अन्य भाषाओं में कम मिलती है। इतना भी कहा जा सकता है कि यास्कके समयमें निर्वचन शास्त्रकी जो स्थिति थी, वह अन्य भाषाओंके निर्वचन शास्त्रसे उत्कृष्ट थी । इस प्रकार का कार्य विश्वकी किसी भाषामें उस समय नहीं हुआ था। निर्वचन शास्त्रके लिए व्युत्पत्ति शास्त्रका प्रयोग भाषा विज्ञानमें देखा जाता है।१६ यद्यपि निर्वचन एवं व्युत्पत्ति में पार्थक्य है फिर भी व्युत्पत्ति का प्रयोग निर्वचन के लिए रूढ़ सा हो गया है । प्रकृत शोध प्रबंध में भी निर्वचन शब्दके लिए व्युत्पत्ति शब्दका प्रयोग किया गया है। " निर्वचन शास्त्र की दृष्टि से यास्क के महत्त्व को देखा जाए तो कहा जायगा कि यास्क निर्वचन सम्राट् थे। भाषा विज्ञान के निर्वचन शास्त्र की शाखा पर यास्क की जो दृष्टि है वह अन्यत्र नहीं मिलती। यहां यह भी कहना असंगत नहीं होगा कि यास्क ने निर्वचन के प्रति अपनी विशेष आसक्ति को प्रदर्शित किया है। यही कारण हैं कि भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से यास्क के सभी निर्वचन पूर्ण ५०३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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