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________________ अध्यायमें उपर्युक्त निरुक्तकारोंका परिचय दिया गया है जिसमें समय, स्थान एवं कृतियोंका भी उल्लेख किया गया है। इन आचार्योंके परिचय में अन्यान्य साधनोंका भी सहयोग लिया गया है। इस कार्यके लिए विविध पुस्तकों, शोध पत्रों, शोधपत्रिकाओं एवं परम्परागत अध्येताओं से विशेष सम्पर्क किया गया है! निर्वचनोंकी प्राप्ति प्रातिशाख्यों एवं व्याकरण ग्रन्थोंमें भी होती है । प्रातिशाख्य वेद की प्रत्येक शाखाओं से सम्बद्ध वैदिक व्याकरण ही हैं जिनमें वैदिक शब्दोंका व्युत्पादन, चिन्तन एवं विश्लेषण किया गया है । पुनः व्याकरण समग्र वैदिक एवं लौकिक शब्दों का व्युत्पादन या अनुशासन करता है । निरुक्तकारोंके स्वतंत्र अस्तित्वकी रक्षाके लिए प्रातिशाख्यकारों एवं वैयाकरणों को निरुक्तकारोंकी श्रेणीमें रखा गया है। प्रसिद्ध मुनित्रय (पाणिनि, कात्यायन एवं पंतजलि) के द्वारा शब्दोंकी व्याख्या की गयी है। बाद टीकाग्रन्थों में भी शब्दोंके ऊपर प्रभूत प्रकाश डाला गया है। न्याय आदि दार्शनिक ग्रन्थोंमें भी व्याख्यात्मक ढंगसे शब्दोंकी विवेचना प्रस्तुत की गयी है। इन लोगोंके अपने-अपने क्षेत्रमें स्वतंत्र अस्तित्वकी रक्षाके लिए ही निरुक्तकारों की श्रेणीमें उन्हें यहां नहीं रखा गया है। यास्कके समय, स्थान आदिके बारेमें अनेक मत-मतान्तर हैं। कुछ लोग पाणिनिको यास्कसे पूर्व मानते हैं तथा कुछ लोग यास्कको पाणिनिसे पूर्व मानते हैं! यास्कके परिचय आदिका गवेषणात्मक विवेचन प्रकृत शोध प्रबंधके चतुर्थ अध्यायमें किया गया है। वहीं पर यास्कको पाणिनि का पूर्ववर्ती भी सिद्ध किया गया है। पाणिनिके सूत्रों पर यास्कका प्रभाव स्पष्ट प्रतिलक्षित होता है। स्वयं पाणिनिने अपने सूत्रोंमें यास्कका उल्लेख किया है। पाणिनिके बादके आचार्यों पर तो यास्क का प्रभाव और भी अत्यधिक देखा जाता है। स्वयं महर्षि पंतजलि अपने महाभाष्यमें यास्कके सिद्धान्तोंका अनेकशः उल्लेख करते हैं । हम कह सकते हैं कि व्याकरणका बहुत बड़ा भाग निरुक्तका ऋणी है । प्रकृत शोध प्रबंध विशेष रूपसे निरुक्त पर ही आधारित है। निरुक्तकी विवेचनाके साथ यास्कके ज्ञान गाम्भीर्यका उल्लेख इसी अध्यायमें किया गया है। यास्कके ज्ञान गांभीर्यका संकेत निरुक्तसे ही विशेष रूप में प्राप्तहो जाता है। निर्वचन के कुछ मान्य आधार हैं। इन आधारों में ध्वनि को सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त है। ध्वनि शब्द की लघुतम इकाई है जिनके संयोग से शब्द निष्पन्न होता है। शब्द की इकाई के रूप में ध्वनि का महत्त्व इसलिए और अधिक हो जाता है क्योंकि शब्द का वही मूल आधार है। भौतिक रूप के बिना शब्दकी स्थिति मानी नहीं जा सकती । ध्वनि को हम शब्द का भौतिक रूप कह सकते है तथा ४९८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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