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________________ भी अनेकार्थक शब्दोंकी प्रचुरता है । निघण्टुका चतुर्थ अध्याय ऐकपदिक काण्ड कहलाता है इसमें तीन खण्ड हैं तथा क्रमशः ६२, ८४ एवं १३२ कुल २७८ पद संकलित हैं। यास्कके अनुसार ये सभी पद स्वतंत्र हैं तथा अनेकार्थक हैं। यास्क ने इन पदोंका निर्वचन निरुक्तके चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ अध्यायों में किया है। संहिताओं से लेकर अद्यावधि अनेकार्थक शब्द प्रयुक्त होते रहे हैं। गमन् अर्थवाला हन् धातुसे निष्पन्न हंस शब्दका सामान्य अर्थ होता है- जाने वाला, गमन करने वाला । इस आधार पर यह शब्द एक पक्षी विशेषके लिए रूढ़ हो गया है जिसके संबंधमें कहा जाता है कि वह नीरक्षीर विवेकी होता है। यद्यपि गमन तो सभी पक्षियोंका कर्म है फिर मराल विशेष के लिए ही हंस शब्दकी प्रसिद्धि क्यों हुई। ऐसी स्थितिको समझने के लिए निर्वचनकी अपेक्षा हो जाती है। हंस शब्दका निर्वचन करते हुए यास्क कहते हैं- हंसो हन्तेर्जन्त्यध्वानमिति‍ अर्थात् हंस शब्द हन् गतौ धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह गमन करता है। हंसका अर्थ सूर्य भी होता है. क्योंकि उसे गमन करते देखा जाता है। सूर्य की किरणें सर्वत्र व्याप्त हो जाती है। ऋग्वेदमें हंस शब्द सूर्यके साथ ही आत्मा एवं परमात्माका भी द्योतक है।" सूर्यरश्मि एवं परमात्माकी ज्योति से समग्र संसार व्याप्त है इस व्याप्ति सादृश्यके कारण हंसको सूर्य एवं आत्माका वाचक माना गया। हन् धातुका अर्थ हिंसा भी होता है। आज हन् धातु गमन की अपेक्षा हिंसा अर्थ में ही अधिक प्रचलित है। निरुक्त में हन् धातु हिंसार्थक भी माना गया है। यास्क हस्त शब्दके निर्वचन में हन् (हिंसायाम् ) धातुको ही उपस्थापित करते हैं- हस्तो हन्तेः प्राशु हनने अर्थात् हस्त शब्द हन् धातुसे बनता है क्योंकि वह मारने में शीघ्र करता है। इस प्रकार हिंसार्थक हन् धातुका प्रयोग निरुक्तमें अन्यत्र भी देखा जाता है। शब्दोंकी अनेकार्थताके लिए एक ही उदाहरण यहां पर्याप्त है। प्रस्तुत शोध प्रबंध में तो इस प्रकार के अनेक शब्द परिशीलित हैं हीं। एकार्थक शब्दों में भी अर्थानुसन्धान की जिज्ञासा बनी रहती है। किसी शब्दमें कोई विशेष अर्थ क्यों है उस अर्थके पीछे कौन आधार संभाव्य है। विभिन्न आधारोंमें ध्वन्यात्मक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, कर्मात्मक, रूपात्मक, सादृश्य आदि की संभावनाओंका परीक्षण अर्थानुसन्धानमें अपेक्षा रखता है। शब्द निहित अर्थोंके अन्वेषणकी प्रवृत्ति वैदिक कालसे ही रही है। वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त शब्दोंको स्पष्ट करने के लिए उसके धातुकी ओर वहीं संकेत कर दिया गया है। शब्दोंका धात्वर्थ संकेत निर्वचन प्रक्रिया की ओर अभिगमन है। शब्दों का अर्थ विनिश्चय कोषग्रन्थ, व्याकरण, आप्तवाक्य, व्यवहार आदि से भी देखा जाता है। लेकिन निर्वचन शास्त्र के द्वारा शब्दों का अर्थ निर्धारण ४९४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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