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________________ विज्ञानके अनुसार यह निर्वचन पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जायगा। (१८) अथर्वाण :- यह एक संज्ञापद है। नैरुक्तोंके अनुसार ये माध्यमिक देवता हैं। निरुक्तके अनुसार- अथर्वाणोऽथनवन्तः।२५ अथन से युक्त को अथनवन्त कहेंगे। अथन वन्त ही अथर्वाण है। अथन शब्द गत्यर्थक थक् धातुके योगसे बनता है। थ गतौ से थर्वाण तथा उससे रहित को अथर्वाण:३४-अथवतुपू अथर्वाणः। इस प्रकार अथर्वाण: का अर्थ होगा स्थिर प्रकृति वाला।३५ निरुक्त मीमांसामें अथर्वन् का अर्थ अग्नि को खोजनेके कारण पड़ा गणाभिधान है जिसने कालान्तरमें व्यक्तिगत नाम का स्थान ले लिया।३६ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। अवेस्ताका आयवन शब्द अग्नि पुरोहितका वाचक है।३७ वैदिक आथर्वण भी लगता है यज्ञाग्निसे पूर्ण सम्बद्ध थे। (१९) आप्त्या :- यह मध्यम स्थानीय देवगणका वाचक है। निरुक्तके अनुसार आप्त्या आप्नोते:२५ यह शब्द आप्ल व्याप्ती धातके योगसे निष्पन्न हआ है, क्योंकि वे व्याप्त हो जाते हैं। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। दर्गाचार्यने इन्हें इन्द्रसहचारी माना है।३६ (२०) अदिति :- स्त्री देवताओंमें प्रथम अदिति हैं। यह मध्य स्थानीय स्त्री देव हैं। इसका विवेचन चतुर्थ अध्यायमें हो चुका है। अदितिको दाक्षायणी एवं अग्नि भी कहा गया है।४० (२१) आग :- इसका अर्थ होता है अपराध। निरुक्तके अनुसार-आङ् पूर्वादगमे:४० यह शब्द आङ् उपसर्ग पूर्वक गम् धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि कर्ताको यह अवश्य प्राप्त होता है।४१ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इण् गतौ से असुन् प्रत्यय कर आग: शब्द बनाया जा सकता है।४२ (२२) एनस् :- इसका अर्थ होता है पाप। निरुक्तके अनुसार एन एते:४० यह शब्द इण् गतौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरण के अनुसार इण् गत असुन् प्रत्यय तथा नुडागमसे एनस् शब्द बनाया जा सकता है।४३ (२३) किल्विषम् :- यह पापका वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) किल्विषं क्लिभिदं० किल्विष शब्द किलभिद् शब्दसे वना है। किल् का अर्थ निश्चय ही तथा भिद् विष् का वाचक है। यहां विष की व्याख्या भिसे की गयी ४६९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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